काश! मेरा मन
सरकंडे की कलम- सा होता
जिसे छील-छाल कर,
बना कर
भावना की स्याही में डुबाकर
मैं लिखता
कुछ चिकने अक्षर –
मोतियों-से,
प्रेम के।
काश! मेरा मन
सरकंडे की कलम- सा होता
जिसे छील-छाल कर,
बना कर
भावना की स्याही में डुबाकर
मैं लिखता
कुछ चिकने अक्षर –
मोतियों-से,
प्रेम के।
वाह बहुत सुन्दर।
लाजवाब भाव…एक दम नई सोच….भाई वाह..
नीरज
इतने कम शब्दों में इतनी गहरी बात, नयी तरह की सोच नयी तरह की कविता।
इस टाइप की कविता के लिए मैंने शब्द चुना है — 'कैप्सूल-पोएट्री' … आभार ,,,