मैंने अपने समय को पहचानने की कोशिश की। मुझे लगा समय समाज को अतिक्रमित नहीं करता- उसे व्यक्त करता है। मेरे अस्तित्व ने मेरे व्यक्तित्व को अनगिन मौकों पर इस समय और समाज से लड़ते देखा है। मैंने अपनी इस लड़ाई में कहीं न कहीं समय (समाज) की सीमाओं को महसूस किया है और इस सीमाओं से मुक्त होने की चेष्टा में ख़ुद भी इन्ही सीमाओं में बंधता चला गया।
आज का समय सफलता, असफलता का समय है। इस युग के दो वर्ग किए जा सकते हैं – 
१) सफलता का युग, २) असफलता का युग।
मेरे आसपास सफल लोगों की एक लम्बी भीड़ है। मैं सफल उन्हें कह रहा हूँ जो अपने अपने मध्यम बरतते हुए एक भीड़ से हटकर पहचाने जाने वाली शख्सियत बन गए हैं; जिन्होंने समाज को अपने ढंग से देखने की कोशिश में समाज की अतिरंजनाओं से कहीं न कहीं अपने को संयुक्त कर लिया है। मैं सफल लोगों की सफलता का कारण वर्त्तमान युग की प्रकृति से साधर्म्य मानता हूँ।
अपने समय को पहचानने की कोशिश में मैंने सफल लोगों की सफलता एवं उस सफलता के कारणों को पहचानने की कोशिश की। बहुत कुछ समझ बूझ कर विवेचना से इतर मैंने आज के समय का वर्गीकरण कर दिया है। वस्तुतः यह वर्गीकरण मैंने अपने भुक्त यथार्थ एवं सापेक्ष सामाजिक जुड़ाव से निर्मित किया है, अतः यह पूर्णतः अप्रासंगिक भी हो सकता है (होगा- मुझे आश्चर्य नहीं)।
मेरा समय अयोग्यता का समय है। अयोग्यता का समय इसलिए कि योग्यता एवं अयोग्यता की विभाजन रेखा बहुत कुछ धुंधली हो गयी है। योग्यता एवं अयोग्यता की कसौटी सफलता बन गयी है। सफल होने के लिए समाज ने अनगिनत उपकरण निर्मित किए। रिश्वतखोरी, नातेदारी, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद जातिवाद आदि ने योग्यता एवं अयोग्यता का गुण धर्म छीन लिया। वस्तुतः छिन गयी योग्यता प्राप्त करने की ललक।
मेरा समय मिथ्यावादिता का समय भी है सत्य की रोशनी में अब शायद सफलता के सूत्र नहीं ढूंढें जा सकते । झूठ सफलता के न जाने कितने मुलम्मे चढ़ाकर चमक रहा है। सच का मध्यम बरतते हुए सफल होना एक लम्बी जद्दोजहद है , पर झूठ के बल पर सफल होने का करिश्मा रोज हुआ करता है। झूठ जरूरतों के लिए जन्म लेता है और उनकी पूर्ति के लिए अपना विकास करता है। अयोग्यता एवं झूठ समकक्षी हैं। मेरे कस्बे में सभी डॉक्टर एमबीबीएस थे। मुख्या चिकित्साधिकारी ने जांच कराई – एक को छोड़ सभी ने क्लिनिक हफ्ते भर के लिए बंद कर दिए। पर उसी हफ्ते भर के भीतर मुख्य चिकित्साधिकारी का मुंह भी बंद हो गया। मेरे इस कस्बे के इकलौते एमबीबीएस हर वर्ष एक एमबीबीएस पैदा करते हैं- डॉक्टरों की भीड़ बढ़ती जाती है, क्लिनिक खुलते जाते हैं ।
अयोग्यता, मिथ्यावादिता एवं छद्म संतत्व मिलकर एक नए गुणधर्म का विकास करते हैं- वह है छद्म संतत्व। आजका समय छद्म संतत्व का समय है। अयोग्यता ने, मिथ्यावादिता ने सुनहरा आवरण ओढ़ लिया है। सफलता का मुहावरा बन गया है छद्म संतत्व। बिना किसी प्रयास श्रम एवं संघर्ष के यह संतत्व सफलता के नए प्रतिमान गढ़ता है। छलता है हमारी समरसता, हमारी योग्यता, हमारी ग्राह्यता, हमारे बंधुत्व एवं हमारे मन को- कभी भगवा आवरण में, कभी मौलाना टोपी व लम्बी दाढी में, कभी कंघा, कड़ा, कृपाण आदि के प्रतीकों में तो कभी ‘धम्म-संघ’ की पहेलियों में।
मेरा समय अबूझा समय है। शाषक पुरूष है, शाषित स्त्री। पर सदैव बहस मुसाहिबे का विषय बनती है स्त्री। अजीब है कि भाषा पुरुष की है और उस भाषा में विमर्श स्त्री का। कैसी कुटिल नीति है? नहीं, नहीं, यह सफलता का नुस्खा है। स्त्री-विमर्श मुद्दा-ए-ख़ास है। वस्तुतः मेरा समय ही स्त्री-विमर्श का समय है । मेरा एक मित्र कहा करता है, “किसी भी विमर्श के लिए भाषा चाहिए- अपनी स्व-अर्जित भाषा । आज स्त्री की भाषा कहाँ है, इस पुरुष समाज में ? फिर जब अपनी भाषा नहीं तो विमर्श कैसा ? कहाँ है स्त्री-विमर्श ?” पर मैं सदा समझाता हूँ उसे कि यह विमर्श स्त्री-अस्मिता के लिए नहीं, पुरुष के अस्तित्व के नए स्वरूप के विकास के लिए है। युगों की भांति एक बार फिर उपकरण है स्त्री। नहीं,नहीं -स्त्री-विमर्श ।
स्त्री-विमर्श की ही तरह दलित-विमर्श ने मेरे युग को एक औजार थमा दिया है । दलित -विमर्श का विमर्श दलितों के लिए अथवा दलितों का विमर्श नहीं है, अपितु यह विमर्श दलितों पर विमर्श है । आज यह विमर्श विमर्शकारों की बहुआयामी प्रतिभा एवं कुशल विमर्स्श्कार बनने की काबीलियत का साक्ष्य बन गया है । दलित विमर्श्कारी ने साहित्य, समाज में सफलता के नए आयाम छुए है। दलित विमर्श एक बौद्धिक नुस्खा है सफलता का। अतः मेरासमय दलित विमर्श का समय है ।
अतः मेरा यह समय १)अयोग्यता, २) मिथ्यावादिता, ३)छद्म संतत्व, ४)स्त्री-विमर्श एवं ५)दलित विमर्श का समय है और वस्तुतः समय के यही गुणधर्म समय के स्वरूप की निर्मिति के औजार भी हैं।
मेरा यह वर्गीकरण उन सभी विभूतियों को अपवाद स्वरुप मानता है जिन्होंने अपनी क्षमता,कार्यकुशलता, श्रम एवं योग्यता से सफलता के कीर्तिमान गढे हैं।

Categorized in:

General Articles,

Last Update: September 17, 2022