(१)
बहुत दूर नहीं
बहुत पास..
कहकर
तुमने बहका दिया
मैं बहक गया।
(२)
एक,दो,तीन…नहीं
शून्य मूल्य-सत्य है
कहा
फिर अंक छीन लिए
मैं शून्य होकर विरम गया।
(३)
तुम हो
जड़ों के भीतर, वृन्त पर नहीं
तुमने
ऐसा आभास दिया
मैंने जड़े खोद दीं।
(४)
विकल्प की कैसी आस
सत्य तो निर्विकल्प है..
मुझे समझाया था
मैं अब तलक
ढूंढ रहा हूँ सत्य।
(५)
चरैवेति, चरैवेति..
नारद ने कहा था, तुमने भी कहा
मैंने आस की डोर पकड़ ली
अभी तक मैं चल रहा हूँ
चलता ही जा रहा हूँ।
अतिरिक्त कविता लिंक: मैंने कविता लिखी
बहुत बेहतरीन!!
कितनी स्थितियों से गुजरे हो मित्र ! कविता बताती है !