छठ पूजा के सन्दर्भ में यह समझना होगा कि हमारी परम्परा में विभिन्न ईश्वरीय रूपों की उपासना के लिए अलग-अलग दिन-तिथियों का निर्धारण है। जैसे गणेश पूजा के लिए चतुर्थी, विष्णु-पूजा के लिए एकादशी आदि। इसी प्रकार सूर्य के लिए सप्तमी तिथि की संगति है, जैसे सूर्य-सप्तमी, अचला सप्तमी आदि. छठ या सूर्य षष्ठी पर्व को लेकर मुख्य उत्सुकता यही है कि बिहार के इस व्रत में सूर्य से षष्ठी तिथि की संगति किस महत्व का प्रतिपादन करती है?
छठ पूजा का पौराणिक कथाओं में उल्लेख
पौराणिक कथाओं, उल्लेखों से अगर हम सन्दर्भ ग्रहण करें तो किंचित सूर्य एवं षष्ठी तिथि के समन्वय पर कुछ विचार हो सके? ‘बह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि परमात्मा ने सृष्टि के लिए स्वयं को दो भागों में विभक्त किया। दक्षिण भाग से पुरुष और वामभाग से प्रकृति का आविर्भाव हुआ। यही प्रकृति देवी विश्व की समस्त स्त्रियों में अंश,कला, कलांश,कलांशांश भेद से अनेक रूपों में दिखायी देती हैं। इन्ही प्रकृति का छठा अंश जो सबसे श्रेष्ठ मात्रिका मानी जाती हैं – ‘देवसेना’ या षष्ठी देवी कहलाती हैं। यह देवी श्रृष्टि के समस्त बालकों की रक्षिका एवं आयुप्रदा हैं।
‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में ही इस देवी के महत्व से सम्बंधित ‘राजा प्रियव्रत’ की कथा का उल्लेख है। राजा प्रियव्रत निःसंतान थे। महर्षि कश्यप की प्रेरणा से पुत्र हुआ परन्तु वह शिशु मृत था। राजा के गहरे दुःख से द्रवित होकर आकाश से एक ज्योतियुक्त विमान में ब्रह्मा की मानस पुत्री ‘षष्ठी देवी’ उतरीं एवं अपने स्पर्श मात्र से शिशु को जीवित कर दिया। राजा प्रसन्न हो गए एवं देवी की स्तुति करने लगे। तब से षष्ठी तिथि की पूजा की परम्परा आरम्भ हो गयी।
एक अन्य महत्वपूर्ण सन्दर्भ जिससे षष्ठी तिथि में सूर्य पूजा का महत्व प्रकट होता है – मैथिल ‘वर्षकृत्यविधि’ ग्रन्थ है। इसमें बिहार में प्रसिद्ध सूर्य षष्ठी व्रत की पर्याप्त चर्चा है, एवं इस व्रत से संदर्भित ‘स्कन्दपुराण’ की कथा का उल्लेख भी इस ग्रन्थ में है। इस कथा के अनुसार एक राजा कुष्ठरोग ग्रस्त एवं राज्यविहीन थे । एक ब्राह्मण की प्रेरणा से उन्होंने इस व्रत को किया जिससे वे रोगमुक्त होकर राज्याधिपति बन गए।
षष्ठी तिथि में सूर्य पूजा क्यों?
परन्तु षष्ठी तिथि में सूर्य पूजा क्यों? सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, वे समस्त अभीष्टों की पूर्ति करते हैं- “किं किं न सविता सूते।” सांसारिक तीनों इच्छाओं-पुत्र-इच्छा, वित्त-इच्छा एवं लोक-इच्छा – में सभी भगवान सूर्य प्रदान करने में समर्थ हैं, परन्तु पुत्र-इच्छा ? वात्सल्य का महत्व तो स्त्री, माँ ही जानती है। ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकृति-अंश देवी षष्ठी ही संतान की अधिकृत देवी हैं। अतः षष्ठी तिथि में सूर्य-पूजा से मनुष्य की तीनों एषणाओं की पूर्ति हो जाती है। यही कारण है कि इस व्रत का महत्व लोक में अधिक व्याप्त है।
सूर्य षष्ठी व्रत की प्रमुख कथा
सूर्य षष्ठी व्रत की प्रमुख कथा ‘भविष्योत्तर पुराण’ में संगृहीत है. सतयुग में ‘शर्याति’ नाम के राजा की ‘सुकन्या’ नामक पुत्री थी। एक दिन जब राजा शिकार खेलने वन में गए थे तो सुकन्या ने सखियों के साथ भ्रमवश तपस्यारत ‘च्यवन’ ऋषि की दोनों आँखें फोड़ दी थीं । मिट्टी से शरीर के ढँक जाने से च्यवन ऋषि एक टीले की भांति लग रहे थे और उनकी दोनों आँखें जुगनुओं की तरह चमक रही थीं। सुकन्या समझ न सकी और उत्सुकतावश काँटों से उसने दोनों आँखें फोड़ दीं।
इस पाप से राजा एवं उनकी सेना का मल-मूत्र स्तंभित हो गया। फिर राजा शर्याति पश्चातापवश अपनी कन्या के साथ ऋषि के पास पहुंचे और अपनी कन्या का दान उन्हें कर दिया। ऋषि प्रसन्न हो गए और राजा एवं उनकी सेना का मल-मूत्र निष्कर्षण भली-भांति होने लगा। अपने अंधे पति च्यवन के साथ रहती हुई सुकन्या ने एक दिन नागकन्याओं द्वारा किए जाने वाले इस व्रत को देखा एवं बाद में स्वयं यही व्रत किया जिससे उसके पति की आँखें ठीक हो गयीं।
अतः पति के आयु, आरोग्य एवं पुत्र की कामना, सुरक्षा, हित-क्षेम आदि के लिए इस व्रत का महत्त्वपूर्ण विधान है। बिहार के लोकगीतों में पुराणों की इन कथाओं का समन्वय विद्यमान है । इन गीतों में वैभव,ऐश्वर्य, पति के आरोग्य आदि की कामना तो भगवान सूर्य से की जाती है, परन्तु पुत्र की कामना देवी षष्ठी (छठ मैया) से ही की जाती है। अतः भगवान् सूर्य के इस व्रत-पर्व में शक्ति एवं ब्रह्म दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है।
बिहार कर्मभूमि होने के कारण मूलतः मारवाडी होने के बावजूद मेरी माँ और भाभी इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि विधान से करती हैं …जयपुर के तीर्थस्थल गलताजी में भारी भीड़ जुटती है इस पर्व को मनाने के लिए …
खुले आसमान के नीचे सारी रात गाते बजाते छठी मैया की पूजा का विहंगम दृश्य कुछ अपवादों के बावजूद देखने लायक होता है ….!!
वाणी जी के बातो से मै भी सहमत हूँ ……..और इस पावन पर्व पर आपको ढेरो शुभकामनाये !
एकदम सही सापेक्षिक और सामायिक जानकारी , मै तो ऐसे जगह हु जहा पानी तो बहुत है लेकिन कोई घुसता नहीं समुद्र जो है 🙂
बहुत सुंदर लगी यह जानकारी.
धन्यवाद
रोचक लगी यह जानकारी आज टी वी पर देख कर समझने की कोशिश तो की थी .आपके लेख से बहुत अच्छी जानकारी मिली
छठ पूजा के मिथक और महात्म्य से परिचय के आभार -मूलतः यह सूर्य पूजा ही तो है !
acchi jankaari… har baar chhath mein shamil hota tha, 2006 tak… 2007 se yahan aane ki wajah se nahi ja pata hun… par kabhi itna socha hi nahi ki iski utpatti kaisi hui… jankari ke liye dhanyawad…
बहुत रोचक जानकारी है । पंजाब मे इसकी इतनी महत्ता नेहीं है इस लिये इतनी विस्तरित जामकारी नहीं थी शुभकामनँ
छठ पूजा से जुडी बढ़िया जानकारी.
छठ पूजा की गहमा गहमी, और धूम-धाम बिहार झारखण्ड में देखते ही बनती हैं….आश्चर्य मुझे तब हुआ जब मारीशस में भी श्रद्धालूगण गंगा तालाब बना कर पूजा अर्चना और अरग देते दिखे,,,,,,मेरी माँ की उम्र अब नहीं रही इतने कठिन व्रत को करने की परन्तु सूप दान आज भी करती ही है…
बहुत अच्छा लगा आपका आलेख….विदेश में रहने के कारण इन त्योहारों की महत्ता और भी अधिक हो जाती हैं…
आभार…
main sach mein iske baare mein dhoondh raha tha, gyaan ji ke Google Reader bookmark se aapki bookmarked post tak pahuncha aur phir is post par..
bahut bahut dhanyawaad.. Is tyohaar ki kahani to clear ho gayi hai 🙂
Array aap bhi nominated hain indiBlogger ke liye.. sorry aapse apna pahle parichay nahi tha..Jee abhi dekhta hoon 🙂 wasie ab humara to mushkil hi hota ja raha hai 🙂
एक बचपन से इस त्योहार में मां और बहनों के साथ जुड़ा हूं। इस बार इस हास्पिटल के चक्कर में जा न पाया। दादी से ये पूरी कहानी सुन चुका था बहुत पहले, लेकिन आज आपने चित्र और स्पष्ट कर दिया।
इलाहाबाद के महा-संगम पर आपकी रिपोर्टिंग का इंतजार है।
अब तो जयपुर में भी गलता तीर्थ पर छठ पूजा का विधान हर्षोल्लास से मनाया जाता है, आलेख बचा रहा गया सोच कर प्रसन्नता होती है मैंने ऐसा सौभाग्य नहीं पाया कभी भी.
ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये धन्यवाद ।
हिमांशु जी अच्छी चर्चा….
बहुत ही रोचक जानकारी आपने दी है, आभार।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।