कहाँ भूल गया जीवन का राग, मेरे साथी सलोने ।
क्यों रूठ गया अपना यह भाग, मेरे साथी सलोने।
कैसे जतन से ये जीवन सजाया
पड़ गयी उस पर भी बैरन की छाया
मेरा सूख गया लहराता फाग, मेरे साथी सलोने ।
क्षण में जो विहँसा था अब मुरझाया
सुमन सजीला गया था भरमाया
सोया कब तक रहेगा तू जाग, मेरे साथी सलोने ।
माना कि आँखों से आँसू बहेंगे
आँसू ही दुःख की कथाएँ कहेंगे
पर बुझ ना सकेगा चिराग, मेरे साथी सलोने ।
हम दृष्टि पथ से विलग हो जाएँ
अपनी विकलता विकल कर जाएँ
है अमर ये सजल अनुराग, मेरे साथी सलोने ।
बढियां !
फाग सूखा नहीं ,विरह का भी अपना एक रंग है ,बस उसी में रंगी आपकी काव्य-रचना सुन्दर है
धन्यवाद
शानदार अभिव्यक्ति..
“है अमर ये सजल अनुराग, मेरे साथी सलोने ।”
सुंदर है !
कैसे जतन से ये जीवन सजाया
पड़ गयी उस पर भी बैरन की छाया
मेरा सूख गया लहराता फाग, मेरे साथी सलोने ।
बहुत सुंदर रचना.
धन्यवाद
कहाँ भूल गया जीवन का राग, मेरे साथी सलोने ।
क्यों रूठ गया अपना यह भाग, मेरे साथी सलोने।
बहुत सुंदर!
दिल में वैराग सा उफनता रहा
तुम जो आओ तो अनुराग मिले
लाश मेरी ये जल नहीं सकती
बर्फ पिघले तो थोडी आग मिले।
viraha-vedna ko jagrit kar diya aapne apni is rachna mei bahut hi accha laga padna….