नये वर्ष के आगमन पर
बहुत कुछ संजोया है मन में।
सम्भव है नए साज बनें
हृदय के अनगिन स्नेहिल तार जुडें
मन का रंजन हो
उल्लसित हर अकिंचन हो
स्वप्न अवसित धरा पर
मधुरिम यथार्थ का स्यंदन हो।
विचारता हूँ
पिछली सारी विषमताओं को
गाड़ दूंगा जमीन में,
विश्वास लेकर जी रहा हूँ
नए वर्ष के आगमन पर
कि सारे अंधेरे
सम्पूर्ण दर्प,
आच्छादित कालिमा से विचार –
सब कुछ तिरोहित हो जायेगा।
अस्तित्व शुद्ध लेकर विश्वास का
कि नव वर्ष प्रवेश करेगा,
सुशोभित वांगमय संकलित हो
हमारे स्वागत की चेष्टा करेगा,
हम स्वयं में विराट और सुरभित हो सकेंगे
सोच-सोच मधु की तरह घुलता जा रहा हूँ मैं।
उम्मीदों-उमंगों के दीप जलते रहें
सपनों के थाल सजते रहें
नव वर्ष की नव ताल पर
खुशियों के कदम थिरकते रहें।
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं।
सुंदर रचना. यदि हम होते तो अंतिम पंक्ति यों बनती: :सोच-सोच गुड की तरह गलता जा रहा हूँ मैं. नव वर्ष आपके लिए मंगलमय हो.
बहुत सुन्दर।
बहुत सुंदर भाव लिये… अति सुंदर
“विचारता हूँ
पिछली सारी विषमताओं को
गाड़ दूंगा जमीन में,”
क्या सचमुच ? ? ?