चेहरे पर मौन सजा लेते हो
क्योंकि बताना चाहते हो मुझे
मौन का मर्म,
हर पल प्रेम और स्नेह से
सहलाते हो मुझे
शायद बताना चाहते हो
एक स्नेही,एक प्रेमी का कर्म
आकंठ डूब जाते हो हास्य में
मेरे जैसे गर्हित की आस के लिये
शायद देना चाहते हो यह जीवन-दर्शन
कि ‘जीवन हास ही तो है’
और सोख कर गम
बरसा देते हो खुशी
यही समझाने के लिये शायद
कि ‘जीवन गम और खुशी का रास ही तो है”।
और भी न जाने कितने अनगिनत भाव
सजा लेते हो एक साथ
एक ही अरूप-रूप पर
मुझ जैसे अकलित,विरहित,अकुसुमित के लिये।
कितना सिखाओगे मुझे?
और भी न जाने कितने अनगिनत भाव
सजा लेते हो एक साथ
एक ही अरूप-रूप पर
मुझ जैसे अकलित,विरहित,अकुसुमित के लिये।
यह भाव भी कोई कोई ही समझ पाता है ..सुंदर भाव पूर्ण रचना लगी आपकी यह
शायद देना चाहते हो यह जीवन-दर्शन
कि ‘जीवन हास ही तो है’
और सोख कर गम
बरसा देते हो खुशी
यही समझाने के लिये शायद
कि ‘जीवन गम और खुशी का रास ही तो है”।
ये बहुत पंक्तियाँ बहुत अर्थपूर्ण लगी …बहुत खूब…
बहुत ही गहरी बात कही
—आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
सुंदर भाव पूर्ण रचना ! बहुत खूब !
बहुत ही सुंदर भाव पूर्ण कविता.
धन्यवाद