दिन और रात By Himanshu Pandey February 16, 2009 1 Min Read 2 Share on Facebook Share on Twitter Share on Pinterest Share on Telegram Share on Whatsapp दिन गये, तो ठीक न गये, रुके रहे तो और भी ठीक।रात गयी, तो ठीक न गयी, रुकी रही तो………………।Categorized in: Capsule Poetry, Poetry, Last Update: September 20, 2025
तुम्हीं मिलो, रंग दूँ तुमको, मन जाए मेरा फागुन तुम्हीं मिलो, रंग दूँ तुमको, मन जाए मेरा फागुन March 29, 2021
सुंदर सजीली
भीषण विचारणीय..अद्भुत सोच!!
aaj to sirf taarif in shbdo ki kal jwaab apne blog par !!!!
तो भी ठीक, कम से कम उस रोज नींद तो पूरी हो जायेगी। बहुत सुन्दर बिल्कुल तुम्हारे इंटरव्यू जैसी
हूँ !
हाँ! बात तो ठीक है. और इरादे?
तो भी ठीक.. हम कहेगें उस रात की सुबह नहीं..:)
अच्छी पंक्तियां.
ख़ूबसूरत……..
gagar men sagar nahin chammach men sagar
अरे दिन चाहे ना जाये , लेकिन भाई इस अंधेरी रात को तो जरुर जाना चाहिये अगर यह ना गई तो …….
धन्यवद इस सुंदर रचना के लिये
दिलचस्प अंदाज …..
बहुत सुन्दर कविता, बधाई।