विश्वास के घर में
अमरुद का एक पेंड़ था
एक दिन
उस पेंड़ की ऊँची फ़ुनगी पर
एक उल्लू बैठा दिखा,
माँ ने कहा- ‘उल्लू’
पिता ने कहा- ‘अशुभ, अपशकुन’,
फ़िर
पेंड़ कट गया।
अब, उल्लू
तीसरी मंजिल की
मुंडेर पर बैठता है।
विश्वास के घर में
अमरुद का एक पेंड़ था
एक दिन
उस पेंड़ की ऊँची फ़ुनगी पर
एक उल्लू बैठा दिखा,
माँ ने कहा- ‘उल्लू’
पिता ने कहा- ‘अशुभ, अपशकुन’,
फ़िर
पेंड़ कट गया।
अब, उल्लू
तीसरी मंजिल की
मुंडेर पर बैठता है।
बहुत सुंदर, लेकिन कल तो उल्लु पब मै, पार्को मै, ओर पता नही कहा कहां बेठे थे.
धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
क्या कहूँ, शब्द नहीं हैं!
वाह कितनी अर्थपूर्ण !!
बहुत अच्छी…
ओह! टूटेगा घर।
वह जो काटता है पेड़, क्या बचा पायेगा घर!
sunder arthpurn panktiyan
इस प्रकार की थोड़ा और लिखा करे , अच्छा रहेगा !