हम सबके
अपने-अपने
अलग-अलग ईश्वर
कानाफूसी किया करते हैं।
क्या संसार के
हम सभी लोगों को
चुप नहीं हो जाना चाहिये-
जैसा ’इमरसन’ कहता है-
कि हम ईश्वर की
कानाफूसियाँ सुन सकें!
हम सबके
अपने-अपने
अलग-अलग ईश्वर
कानाफूसी किया करते हैं।
क्या संसार के
हम सभी लोगों को
चुप नहीं हो जाना चाहिये-
जैसा ’इमरसन’ कहता है-
कि हम ईश्वर की
कानाफूसियाँ सुन सकें!
सब चुप हो जायेंगे तो ईश्वर के पास कानाफूसी के लिए मैटर कहाँ से आयेगा??
कहीं पढा है……….. मौन ही ईश्वर की भाषा है।
हम मौन हों, तभी सुन पायेंगे ईश्वर को।
बहुत सही अहसास कराया आपने।
हम सबके
“अपने-अपने
अलग-अलग ईश्वर
कानाफूसी किया करते हैं ।”
अजब बात है !
………लेकिन कहने का ढंग ऐसा की फुसफुससाहट सुनाई दे रही है !
ईश्वर मौन की भाषा सुनता है ..अच्छी है यह कविता
ईश्वर की फुसफुसाहट डरावनी होगी ना ?
यह तो ध्यान लगाने वाली बात हुई. भावातीत ध्यान. आभार. .
मौन के महत्व को रेखांकित करती एक सुंदर कविता।
लेकिन हम इन कनफ़ुसियों को सुन कर भी अनसुना कर रहे है, बस अपनी बात भजनो मे शोर मचा कर अपने अपने ढंग से उसे सुना रहे है. अब ईशबर भी क्या करे,
धन्यवाद इस सुंदर ओर सच्ची कवि्ता के लिये
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
वो भी ऐसा करते है?…:)
इश्वर और कानाफूसी !!….नई बात.
हिमांशु भाई मज़ा आ गया।
हम चुप हो जाये तो वो किसके बारे में कानाफूसी करेंगे!
हमारे बारे में ही तो वो बात करते है.!
क्या सचमुच उपर वाला हमारे बारे में सोचता है? और कानाफूसी करता है? बहुत अच्छा