हम सबके
अपने-अपने
अलग-अलग ईश्वर
कानाफूसी किया करते हैं।
क्या संसार के
हम सभी लोगों को
चुप नहीं हो जाना चाहिये-
जैसा ’इमरसन’ कहता है-
कि हम ईश्वर की
कानाफूसियाँ सुन सकें!

सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने तक की घटना को आधार बनाकर रचित इन नाट्य प्रविष्टियों में विशिष्ट प्रभाव एवं अद्भुत आस्वाद है।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
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सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। इस ब्लॉग पर हिन्दी काव्यानुवाद सम्पूर्णतः प्रस्तुत है।
गुरुदेव टैगोर की विशिष्ट कृति गीतांजलि के गीतों का हिन्दी काव्य-भावानुवाद इस ब्लॉग पर प्रकाशित है। यह अनुवाद मूल रचना-सा आस्वाद देते हैं।
विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में अनूदित रचनाओं को संकलित करने के साथ ही विशिष्ट संस्कृत एवं अंग्रेजी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद भी प्रमुखतः प्रकाशित हैं।
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सब चुप हो जायेंगे तो ईश्वर के पास कानाफूसी के लिए मैटर कहाँ से आयेगा??
कहीं पढा है……….. मौन ही ईश्वर की भाषा है।
हम मौन हों, तभी सुन पायेंगे ईश्वर को।
बहुत सही अहसास कराया आपने।
हम सबके
“अपने-अपने
अलग-अलग ईश्वर
कानाफूसी किया करते हैं ।”
अजब बात है !
………लेकिन कहने का ढंग ऐसा की फुसफुससाहट सुनाई दे रही है !
ईश्वर मौन की भाषा सुनता है ..अच्छी है यह कविता
ईश्वर की फुसफुसाहट डरावनी होगी ना ?
यह तो ध्यान लगाने वाली बात हुई. भावातीत ध्यान. आभार. .
मौन के महत्व को रेखांकित करती एक सुंदर कविता।
लेकिन हम इन कनफ़ुसियों को सुन कर भी अनसुना कर रहे है, बस अपनी बात भजनो मे शोर मचा कर अपने अपने ढंग से उसे सुना रहे है. अब ईशबर भी क्या करे,
धन्यवाद इस सुंदर ओर सच्ची कवि्ता के लिये
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
वो भी ऐसा करते है?…:)
इश्वर और कानाफूसी !!….नई बात.
हिमांशु भाई मज़ा आ गया।
हम चुप हो जाये तो वो किसके बारे में कानाफूसी करेंगे!
हमारे बारे में ही तो वो बात करते है.!
क्या सचमुच उपर वाला हमारे बारे में सोचता है? और कानाफूसी करता है? बहुत अच्छा