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मैंने कविता लिखी
जिसमें तुम न थे
तुम्हारी आहट थी
और इस आहट में
एक मूक छटपटाहट
मैंने कविता लिखी
जिसमें उभरे हुए कुछ अक्षर थे
यद्यपि वो फूल नहीं थे
पर फिर भी उनमें गंध थी
मैंने कविता लिखी
जिसमें इन्द्रधनुष नहीं था
हाँ, प्यासे कुछ लोग थे
क्योंकि उसमें बादल था
मैंने कविता लिखी
जिसमें कविता की हूक थी
परम्परा न थी
पर फिर भी आग्रह तो था।
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सार्थक प्रयास। बहुत बहुत बधाई
बहुत ही सुन्दर, बहुत ही कोमल. आभार.
वाह हिमांशु भाई वाह मैने सोचा भी नहीं था कि आप इतनी अच्छी कविता भी करते होंगे। क्या बिम्ब है, क्या ख़्याल है, ऐसे ख्याल किसी-किसी को कभी-कभी ही आते हैं। ये कविता नहीं कहर है। मैं आपकी इसे शानदार कविता के आगे घुटने टेक-कर सलाम करता हूँ। वाह,वाह इन्द्रधनुष नहीं, प्यास है, आहट में छटपटाहट, अक्षर हैं फूल नहीं फिर भी गंध है,परम्परा नहीं लेकिन आग्रह वाह क्या बिम्ब है हिमांशु भाई जीओ इतनी शानदार रचना के लिए आपको बधाई और उस क्षण को शत-शत नमन जिस क्षण ऐसा ख़्याल आया और कविता हो गई। भाई मैं निःशब्द हूँ और आपकी इस कविता को पढ़ने के बात आपका फैन हो गया।
बढियां लगी यह भी !
यथार्थ है!
बहुत ही अद्भुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता .सच बात कहती
बहुत सुंदर और मन को छुती हुई कविता है. शुभकामनाएं.
रामराम.
मैंने कविता लिखी
जिसमें कविता की हूक थी
परम्परा न थी
पर फिर भी आग्रह तो था ।, dil ko chhoo gai. sunder rachna.
बहुत बढिया बेहतरीन कविता लिखी है आपने
पसंद पर क्लिक किये बिना ना रहा गया
कविता छोटी लेकिन भाव बहुत गहरा… बहुत अच्छी लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद
हिमांशु जी, बहुत प्यारी कविता है। आनंद आ गया।
अच्छा है, कविता का कैनवास विस्तॄत है।
बहुत सुन्दर………
कुछ ही शब्दों में गहरा अर्थ
देखन में छोटन लगे. घाव करे गंभीर.