प्रार्थना मैं कर रहा हूं
गीत वह अव्यक्त-सा
अनुभूतियों में घुल-मिले।
हंसी के भीतर छुपा
बेकल रुंआसापन
और सम्पुट में अधर के
बेबसी का क्षण,
प्रार्थना मैं कर रहा हूं
अश्रु जो ठहरा हुआ
शुभ भाव ही के हित निकल ले।
अजानी राह पर
ढहते पराक्रम की कथायें
किन्हीं बिकते प्रणों की
अनगिनत सहमी व्यथायें,
प्रार्थना मैं कर रहा हूं
साज जो अनबूझ-सा
वह सरस राग सहाय्य बज ले।
अच्छी कविता है।
sunder bhav liye,sunder lavita
सुंदर कविता.
रामराम.
अच्छी लगी आपकी कविता
रचना सुन्दर लगी. आभार.
प्रार्थना के शब्द सुवर्णमय हो जाते हैं!
अति सुन्दर लगी आप की यह कविता.
धन्यवाद
bahut sunder himanshu bhai.prarthna to dil ki awaz hai, prabhu tak pahunchegi hi. sukhad.