दीपावली की बधाई देते हुए अपने एक फौजी मित्र को शुभकामना-पत्र भेंजा था । आज वह मुझ तक वापस आ गया । पता नहीं मिला, या पहुंच न सका, पता नहीं । मैंने सोचा उसे यहाँ पोस्ट करुँ । भाव यही है – दीपावली बीत गयी तो क्या – “दिन को होली रात दिवाली रोज मनाती मधुशाला ” ।
चलो दीया जलायें
कि स्नेह-सिक्त भाव-दीप जगमगा दें पूरा अन्तर्भाव,
कि सुखान्तक खेल प्रकाशित हो सर्व-सर्वत्र में,
कि अनुभुति के ज्योतिपुंज अनुराग का उत्स बनें
कि रोशनी-सी खिलखिलाहट उतर आये मन के आँगनचलो दीया जलायें
कि दीये जैसा हो अपना मन ।
सही कहा होली दीवाली तो हमारे मन में होती है।
———-
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
सही है, “दिन को होली रात दिवाली रोज मनाती मधुशाला ” ।
अच्छा लगा…
“अनुभुति के ज्योतिपुंज अनुराग का उत्स” !!!!!!!!!!!!!!!!!!!