I am here to sing thee songs. In this hall
of thine I have a corner seat.
In thy world I have no work to do ; my
useless life can only break out in tunes
without a purpose.
When the hour strikes for thy selent
worship at the dark temple of midnight,
command me, my master, to stand before
thee to sing.
When in the morning air the golden harp
is tuned, honour me, commanding
my presence. (R.N.Tagore:Geetanjali)
मैं हूँ यहाँ स्वरित करने को हे प्राणेश्वर गीत तुम्हारा
प्रिय तेरे इस विशद कक्ष में संस्थित कोना एक हमारा ।
तेरी इस संसृति में प्रियतम और न कुछ हमको करना है
कारण हीन वृथा जीवन को तेरे गीतों से भरना है
झंकृत होंगा निरुद्देश्य ही तेरे गीतों का एकतारा –
प्रिय तेरे इस विशद कक्ष में संस्थित कोना एक हमारा ।
तिमिराच्छन्न अर्द्ध रजनी के देवालय का होगा प्रांगण
उद्वेलित कर दे अंतर जब तेरी मौन अर्चना का क्षण
आज्ञा देना प्रभु हो आगे खड़ा करूँ गुंजित स्वर प्यारा-
प्रिय तेरे इस विशद कक्ष में संस्थित कोना एक हमारा ।
अरुणोदय समीर में प्रियतम जब स्वर्णिम वीणा हो झंकृत
नाथ उपस्थिति की आज्ञा दे तब मुझको करना सम्मानित
आया यहाँ बहाने ’पंकिल’ प्रभु तेरे गीतों की धारा –
प्रिय तेरे इस विशद कक्ष में संस्थित कोना एक हमारा । (’पंकिल’-मेरे बाबूजी)
वाह प्रमुदित करता भावानुवाद !