I must launch out my boat. The
languid hours past by on the shore-
Alas for me !

The spring has done its flowering and
taken leave. and now with the burden
of fadede futile flowers I wait and linger.

The waves have become clamorous and
upon the bank in the shady lane the
yellow leaves flutter and fall.

What emptiness do you gaze upon !
Do you not feel a thrill passing
through the air with the notes of the
far-away song floating from the other shore? (Geetanjali : R.N.Tagore)

निश्चित ही उतारना अपनी नाव बीच जलधारा
हा धिक! बीत रहा तट पर ही मन्थर समय हमारा ।

खिले सुमन नव नवल कोपलें दी मधुऋतु ने फेरी
मैं नगण्य मुरझाये सुमनों की सिर पर रख ढेरी
पंथ जोहता रहा विलम्बित पथ पर खड़ा बिचारा
हा धिक! बीत रहा तट पर ही मन्थर समय हमारा ।

नीर-तरंगें कल-कल कल-कल छल-छल बहती जातीं
छायामय वीथी में तट पर झरती पीली पाती
क्या शून्यता निहार रहे फैलाये लोचन तारा
हा धिक! बीत रहा तट पर ही मन्थर समय हमारा ।

हो न रही मारुत सिहरन की क्या अनुभूति तुम्हारी
क्या न सुन रहे दूर तरंगित राग रागिनी सारी
बहा जा रहा जो स्वर पंकिल छूकर अपर किनारा
हा धिक! बीत रहा तट पर ही मन्थर समय हमारा । (’पंकिल’- मेरे बाबूजी)