उन्हें नब्ज अपनी थमा कर तो देखो
दवा उनकी भी आजमा कर तो देखो ।
अभीं पीठ कर अपनी बैठे जिधर तुम
उधर अपना मुख भी घुमाकर तो देखो ।
दरख्तों की छाया में है चैन कितना
कभी धूप में तमतमा कर तो देखो ।
सुघर साँवला जिसको आकर चुरा ले
कभी वह दही भी जमाकर तो देखो ।
जिसे बाँट कर खूब प्रमुदित रहो तुम
कभीं वह भी दौलत कमा कर तो देखो ।
@….दौलत कमा कर तो देखो।
बहुत खूब।
आप ने समझा नहीं अभी तक हमको
कभी अपने दिल में बिठाकर तो देखो।
बढियां !
दिल सलामत है अभी तक दोस्तों
phreb कोई नया करके तो देखो
उपर की दो पंक्तियों व नीचे की दो पंक्तियों के में बात का तारतम्य तो ठीक लग रहा है लेकिन भावो की गंध में थोडा अंतर samaj आ रहा है |
उनकी दवा आजमाना भी ठीक ही है लेकिन यह jaroorat क्यों पढ़ jaatii है ?
नीचे की दो पंक्तिया सुन्दर है !
जिसे बाँट कर खूब प्रमुदित रहो तुम
कभीं वह भी दौलत कमा कर तो देखो ।
बहुत ही लाजवाब रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
एक बार में तो कमेन्ट पोस्ट होता ही नही ! ऊपर से ये ट्रांसलिटरेशन की गलतिया !!!!
दरख्तों की छाया में है चैन कितना
कभी धूप में तमतमा कर तो देखो ।….
उम्दा .
बहुत सुन्दर : दवा की चर्चा ब्लॉग समयचक्र में
बहुत बढिया ..
हिमांशू जी दवा भी आजमाई जायेगी 🙂
फिलहाल एक अच्छी गजल पढने को मिली
धन्यवाद
वीनस केसरी
बहुत सुन्दर गज़ल.
गुलमोहर का फूल
लाजवाब ग़ज़ल हर शेर दिल से दाद निकलवा कर ही छोड़ता है…….
जिसे बाँट कर खूब प्रमुदित रहो तुम
कभीं वह भी दौलत कमा कर तो देखो ।सुंदर ग़ज़ल है ,शब्दावली का चयन और भावाभिव्यक्ति दोनों में …मेरे दुसरे ब्लॉग की टिप्पणी वाली समस्या बतलाने का आभार..
मुझे दर्दे दिल का पता ना था
मुझे आप किस लिये मिल गये
ऐसी हालात मे नब्ज पक्डाना खतर्नाक भी हो सकता है नीम हकीम खतरे जान
मेरी सलाह है कि हर किसी को नब्ज दिखाना और दवा आजमाने के साइड इफ़ेक्ट ज्यादा है फ़ायदे कम