द्रौपदी के पाँच पुरुषों की पत्नी होने पर बहुत पहले से विचार-विमर्श होता रहा है। अनेक प्रकार के रीति-रिवाजों और प्रथाओं का सन्दर्भ लेकर इसकी व्याख्या की जाती रही है। अपने अध्ययन क्रम में मुझे अचानक ही श्रीदुर्गाभागवत का यह लघु-लेख मिल गया। पाँच पुरुषों की पत्नी होने की अवस्था में औचक ही एक रहस्य देख लिया है श्री भागवत ने। द्रौपदी को लेकर कुछ ऐसा सोच ही नहीं पाया था मैं, मुझे भी यह विचार कुछ नये से लगे।

सारिका‘ के 15 अक्टूबर,1985 के अंक से ज्यों का त्यों साभार यह लघु-आलेख प्रस्तुत कर रहा हूँ-

द्रौपदी के पाँच पति थे। इस विषय में अनेक अध्येताओं ने किसी न किसी प्रदेश अथवा जाति में प्रचलित बहुपतित्व की प्रथा का उल्लेख कर उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया है। मुझे उन व्याख्यायों की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। द्रौपदी का इस अवस्था का जो उल्लेख मात्र संयोगवश महाभारत में आ गया है, उसमें मुझे एक रहस्य दृष्टिगोचर होता है। कहना न होगा कि वह रहस्य भी व्यास ने इंगित भर किया है और बात समाप्त कर दी है। कुंती और द्रौपदी सास-बहू हैं। अर्थात समान वंश के संवर्धन का उत्तरदायित्व उठाये हुए हैं। कुंती अपने वरदान के बल पर देवताओं को कामपूर्ति के लिये बुला सकी थी। परम्परा में एक सूक्ति चलती है- “द्रौपदी पाँच पुरुषों के लिये काम्य सिद्ध हुई और कुंती भी।” इस सूक्ति ने, अनजाने, दोनों के मानसिक व दैहिक साधर्म्य का उल्लेख कर दिया है। दोनों के हृदयों की गढ़न इस विषय में एक समान थी। कुंती की नियोजक संतानों के वंश का पालन-पोषण द्रौपदी जैसी एक नारी करती है- यह मात्र संयोग नहीं है, यह एक अनुक्त संकेत है, जिसे व्यास ने इस प्रकार संकेत किया है कि सामान्यतः समझ में नहीं आ सकता; मुझे तो यही लगता है। क्योंकि इस धागे को जरा और ताना होता तो भी कुंती और द्रौपदी के व्यक्तित्व का समग्र सौंदर्य तथा औचित्य विनष्ट हो जाता। इसीलिये व्यास ने कुंती के इर्द-गिर्द सतत दुख के चक्र को चलाया है और दिखाया है कि द्रौपदी इंद्राणी का अंश है। इंद्र अनेक हैं- इंद्राणी एक है- यह पुरातन संकेत है; द्रौपदी के संदर्भ में व्यास ने कैसी चतुराई से उसका प्रयोग किया है! पांडव कुंती के बेटे थे इसी कारण उन्हें द्रौपदी के साथ ऐसा समान संबंध स्थापित करना काम्य जान पड़ा, संभव प्रतीत हुआ- यह भी एक सत्य ही है।

दुर्गा भागवत- सारिका, १५ अक्तूबर १९८५