He whom I enclose with my name is weeping
in this dungeon. I am ever busy building
this wall and around; and as this wall goes
up into the sky day by day I lose sight of
my true being in its dark shadow.

I take pride in this great wall, and I plaster it
with dust and send lest a least whole
should be left in this name; and for all
the care I take I lose sight of my true being.

(R.N.Tagore : Geetanjali)

हमारा जो है अपना आप ।
वह इस काल कोठरी में बैठा कर रहा विलाप ॥

मैं तो व्यस्त सदैव चतुर्दिक रचने में प्राचीर
ज्यों-ज्यों प्रतिदिन उठता नभ में इसका दीर्घ शरीर
त्यों-त्यों खोता निज निजता सह तम छाया संताप
हमारा जो है अपना आप ।


इसी महत प्राचीर बीच सर्जित करता अभिमान
सिकता रज लेपित करता हो रंच न छिद्र विधान
इसी ध्यान में खो देता ’पंकिल’ निजता की छाप
हमारा जो है अपना आप ।