वृक्ष दोहद की संकल्पना के पीछे प्रकृति के साथ मनुष्य का वह रागात्मक संबंध है जिससे प्रेरित होकर अन्यान्य मानवीय क्रिया-कलाप वृक्ष-पादपों पर आरोपित कर दिये जाते रहे हैं। प्रकृति के साथ मनुष्य के यह रागात्मक सम्बन्ध वस्तुतः उसके आनन्द को और व्यापक बनाते हैं। मनुष्य के अन्तर्निहित भावों की अभिव्यक्ति इसी कारण प्रकृति के माध्यम से होने लगी और अनेकों इच्छायें (पूर्ण-अपूर्ण) विभिन्न क्रियाकलापों में दृष्ट होने लगीं।
वृक्ष-दोहद का सम्बन्ध वृक्षों में असमय/अ-ऋतु ही पुष्प के उदगम से लिया जाता रहा है। आश्चर्यजनक है कि स्त्रियाँ जो स्वयं उर्वरता और प्रजनन के लिये उत्तरदायी हैं, विपरीततः अपनी विभिन्न क्रियाओं से वृक्षों को गर्भित करती हैं, पल्लवित-पुष्पित करती हैं। वृक्ष-दोहद की क्रिया के अन्तर में मुझे सहज स्वाभाविक गर्भिणी स्त्रियों की सामान्य उत्कंठा दिखायी पड़ती है जो स्वतः में अनूभूत होने वाले उस विरल अनुभूति-व्यापार को अपने सामने, अपने से इतर कहीं घटित होते देखना चाहती हैं। प्रकृति से अच्छा साधन उन्हें कहाँ मिलेगा?
विज्ञान की अननन्तर सिद्ध सैद्धांतिकी कि वृक्षों में जीवन है और वह संवेदित भी होते हैं, साहित्य की कल्पनाशीलता से घुलमिल कर एक रुचिकर प्रसंग वृक्ष दोहद के रूप में हमारे सामने उपस्थित है। वृक्ष दोहद के संबंध में प्राचीन साहित्य शिल्प में जिन वृक्षों का उल्लेख है, उनमें सबसे प्रिय और महत्वपूर्ण वृक्ष अशोक है। कहते हैं, सुन्दर स्त्रियों के पदाघात (पैरों के प्रहार) से अशोक में पुष्प खिल आते हैं, और पैर भी कैसे? किंकिणि-नूपूर-सज्जित, कुमकुम लेपित। नूपूर-सज्जित रमणियों के वाम पैर ही वृक्ष में आघात देते हैं और अशोक पुष्पित हो उठता है। उत्कीर्ण मूर्तियों में अशोक दोहद की क्रिया सम्पादित करती यक्षिणियाँ अपने वाम पैरों से ही आघात करती मालूम पड़ती हैं (A.K. Coomarswami – Yaksas)|
साहित्य में अशोक को कुसुमित करने की क्रिया का उल्लेख
अशोक को कुसुमित करने की इस क्रिया के अनेकों उदाहरण हमारे साहित्य में व्याप्त हैं। राजशेखर की काव्यमीमांसा में इसका उल्लेख है। हमारे विश्व-प्रसिद्ध कवि कालिदास के समस्त काव्य में वसंत-उत्सव के बहाने, अथवा मदनोत्सव के बहाने अशोक को कुसुमित करने की क्रिया का वर्णन है। कुमारसंभव में वसंत का वर्णन करते हुए कवि अशोक को स्कंध पर पल्लवित और कुसुमित बताता है; मेघदूत में भी यक्ष के माध्यम से वह इस क्रिया का उल्लेख करा देता है कि “अशोक तो यक्षिणी के वामपाद का अभिलाषी है”। कालिदास की रचना ’मालविकाग्निमित्र” के तृतीय अंक की सारी कथा ही मालविका के पदाघात से अशोक को पुष्पित करने की क्रिया को केंद्र बना कर रची हुई है।
मदनोत्सव में कामदेव की अभ्यर्थना के पश्चात अशोक को पुष्पित करने की क्रिया विस्तार से वर्णित है मालविकाग्निमित्र में। सामान्यतः होता यही है कि कोई सुन्दर स्त्री अपने समस्त श्रृंगार के साथ, पैरों में अलक्तराग और नूपुर सजा कर, हाथों में अशोक के पल्लव के गुच्छे पकड़कर अपने बायें पैर से अशोक वृक्ष पर आघात करती है। अशोक नूपुर-ध्वनि से उल्लसित होकर अपने कंधे पर ही फूल उठता है। इस मादक क्रिया को अपनी लेखनी से और मादक बना दिया है कालिदास ने।
हेम-पुष्प (स्वर्ण वर्ण के फूलों से लदा हुआ) और तामृपल्लव के नाम से विख्यात अशोक एक सदाबहार वृक्ष है। सदैव हरा रहने वाला। सदैव हरा तो कामदेव ही है। मन, तन, सृष्टि और जीवन- सब की हरीतिमा हर क्षण बनाये रखने वाला और कौन है सिवाय कामदेव के। इसलिये ही यह अशोक भी समस्त शोक को हरने वाला है। खयाल करिये कि कामदेव के पंच बाणों में एक अशोक ही है।
धार्मिक संदर्भ: बौद्ध एवं जैन धर्म
इसे विचित्र संयोग कहें या अशोक की महत्ता को स्थापित करने वाला ईश्वरीय विधान कि यह बौद्ध और जैन दोनों धर्मों के प्रवर्तकों के जीवन से संयुक्त होकर इन धर्मों के लिये श्रद्धा और आदर का पात्र बना। कहते हैं, शाक्य रानी महामाया ने लुम्बिनी के उपवन में इसी वृक्ष के नीचे बुद्ध को जन्म दिया। कथायें कहतीं है, कि रानी माया अपने उपवन में विहार कर रहीं थी और तनिक क्लांत होकर वह एक अशोक वृक्ष के नीचे आकर विश्राम करने लगीं। तभी अचानक ही विचित्रतः अशोक की शाखायें झुकने लगीं, और उन्होंने एक शाखा पकड़ ली। तत्क्षण ही रानी माया के दक्षिण भाग से महात्मा बुद्ध का अवतरण हो गया। जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर के संबंध में भी कहा जाता है कि वैशाली में इसी प्रकार के वृक्ष के नीचे बैठकर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।
वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय विशिष्टताएँ
अशोक सदा हरित रहने वाला २५ से ३० फुट उंचा, अनेकों शाखाओं युक्त घना व छायादार वृक्ष होता है। देखने में कुछ कुछ मौलश्री के वृक्ष-सा। सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसकी बहुतायत है। पत्ते लंबे, गोल व नोंकदार होते हैं। कोमल अवस्था में इन पत्तों का रंग लाल, फिर गहरा हरा हो जाता है। बहुत औषधीय गुण भी हैं इसमें – यह बांझपन का कष्ट हरता है, मातृत्व देता है; रक्त प्रदर में, मूत्र के रोगों में चिकित्सा में सहायक होता है; गर्भाशय की अंतःसतह (एण्डोमेट्रीयम) व डिम्ब ग्रंथि (ओवरी) के ऊतकों पर लाभकारी प्रभाव डालता है और गुर्दे के दर्द एवं पुरुषों में अण्डकोष-सूजन की चिकित्सा में सहायक होता है।
वैज्ञानिक दृष्टि डालें तो अशोक में कई जैव-सक्रिय पदार्थ पाये जाते हैं। मुख्यतः टैनिन्स, कैटेकाल, इसेन्शियल आयल, हिमेटॉक्सिलीन, ग्लाइकोसाइड, सौपोनिन्स, कैल्शियमयुक्त कार्बनिक यौगिक और लौह खनिजयुक्त कार्बनिक यौगिक। आधुनिक वैज्ञानिक मत कहते हैं कि अशोक की छाल का निष्कर्ष गर्भाशय को उत्तेजित करता है। इसके प्रयोग से गर्भाशय की संकुचन दर बढ़ जाती है और यह संकोचन अधिक समय तक बना रहता है। ऐलोपैथिक संश्लेषण औषधि की अपेक्षा इसका प्रभाव हानिरहित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने अशोक की त्वचा में कुछ ऐसे संघटकों की खोज भी की है, जो कैंसर का होना रोकते हैं।
# वृक्ष-दोहद के बहाने वृक्ष-पुष्प की यह चर्चा जारी रहेगी। किंचित अगला पड़ाव अमलतास होगा।
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी. लेकिन आज कोई स्त्री पूरी साज सज्जा के साथ अशोक के तने पर वाम पदों से पदाघात करे तो निश्चित ही मोच आ जायेगी. कलियुग है न?
EK ACHCHHI JAANKAREE …………LAABHPRAD POST…….KAEE CHIJO SE AWAGAT KARAWAYA………BADHAAEE
waah waah
saadhu saadhu
__________bahut hi umda jaankaari bhra aalekh !
badhaai !
हाल ही में एक वैज्ञानिक शोध ने भी सिद्ध किया है कि स्त्रियों की आवाज तथा उनके सामीप्य का वृक्षों के विकास पर सकारात्मक असर पड़ता है. ऐसे में प्राचीन कवियों की इस कल्पना का सामंजन भी अद्भुत संयोग है.
आप ने अशोक वृक्ष के सभी गुण प्रदर्शित कर दिए हैं। पर स्त्रित्व और अशोक में अनन्याश्रित संबंध दिखाई पड़ता है। गर्भधारण में असमर्थ स्त्रियां अशोक की सहायता से विकार रहित हो गर्भ धारण में सक्षम हो जाती हैं। जब वे अशोक का आभार प्रकट करती हैं तो अपनी कामयाबी पर हर्षित अशोक फूल उठता है। यह बात काव्य में कैसे कही जाए यह संस्कृत कवियों से सुन्दर और किस ने जाना है।
बहुत रोचक और सुंदर जानकारी दी आपने.
रामराम.
achchi jankaree ke liye dhanyavad
Hamane pahali bar suna vriksha-dohad ke bare men. jankari badhiya hai, par sahi hai ya galat ham nahin janate.
वाह बहुत सुंदर जानकरी दी आप ने,
धन्यवाद
baht interesting jankaari apkp dhanyawaad khaskar aapke image collection ke liye image ke sath sath kavy shaili bhi utkrisht hai.
bahut achchi aur jankari se pariourd rachana aapki iamage collectoin lajwab hai aur shabd rachana bahut prabhavshali hai.
वाह, बहुत सधा प्रयोग है लाइवराइटर का!
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है . मैंने भी अपने निवास में पेंडुला अशोक का पेड़ लगाया है . उसे देखकर अत्यंत सुख और अजीब अनुभूति होती है .. धन्यवाद.
भारतीय सँस्कृति मेँ, साहित्य मेँ , ना जाने कितनी ऐसी जानकारियाँ भरी पडी हैँ
– लावण्या
अशोक को देखने की एक नयी नजर मिली इस पोस्ट से 🙂
उत्कृष्ट ,यह न तो विज्ञान का लेख है औत न ही साहित्य बल्कि यह दोनों से बढ़ कर सिनर्जी लिए हुए ! रावण ने माँ सीता को अशोक वाटिका में ही क्यों ठहराया -या फिर यह सम्मानोचित कार्य वाल्मीकि या तुलसी ने ही किया -सोचियेगा !
सीता जी वाली बात तो आपसे छूट ही गयी थी…… लेख थोड़ा और बड़ा कर देते……
इतना बड़ा बड़ा लेख लिखेंगे तो हम नहीं पढ़ेगे……… छोटे छोते ठिक ………
bahut rochak jaankaari hai aabhaar
sir plz tell me from where i'll get asoca tree bark