वृक्ष-दोहद की संकल्पना के पीछे प्रकृति के साथ मनुष्य का वह रागात्मक संबंध है जिससे प्रेरित होकर अन्यान्य मानवीय क्रिया-कलाप वृक्ष-पादपों प...

विज्ञान की अननन्तर सिद्ध सैद्धांतिकी कि वृक्षों में जीवन है और वह संवेदित भी होते हैं, साहित्य की कल्पनाशीलता से घुलमिल कर एक रुचिकर प्रसंग वृक्ष-दोहद के रूप में हमारे सामने उपस्थित है। वृक्ष-दोहद के संबंध में प्राचीन साहित्य-शिल्प में जिन वृक्षों का उल्लेख है, उनमें सबसे प्रिय और महत्वपूर्ण वृक्ष ’अशोक’ है। कहते हैं, सुन्दर स्त्रियों के पदाघात (पैरों के प्रहार) से अशोक में पुष्प खिल आते हैं, और पैर भी कैसे? किंकिणि-नूपूर-सज्जित, कुमकुम लेपित। नूपूर-सज्जित रमणियों के वाम पैर ही वृक्ष में आघात देते हैं और अशोक पुष्पित हो उठता है। उत्कीर्ण मूर्तियों में अशोक दोहद की क्रिया सम्पादित करती यक्षिणियाँ अपने वाम पैरों से ही आघात करती मालूम पड़ती हैं (A.K. Coomarswami - Yaksa)|
अशोक को कुसुमित करने की इस क्रिया के अनेकों उदाहरण हमारे साहित्य में व्याप्त हैं। राजशेखर की काव्यमीमांसा में इसका उल्लेख है। हमारे विश्व-प्रसिद्ध कवि कालिदास के समस्त काव्य में वसंत-उत्सव के बहाने, अथवा मदनोत्सव के बहाने अशोक को कुसुमित करने की क्रिया का वर्णन है। कुमारसंभव में वसंत का वर्णन करते हुए कवि अशोक को स्कंध पर पल्लवित और कुसुमित बताता है; मेघदूत में भी यक्ष के माध्यम से वह इस क्रिया का उल्लेख करा देता है कि "अशोक तो यक्षिणी के वामपाद का अभिलाषी है"। कालिदास की रचना ’मालविकाग्निमित्र” के तृतीय अंक की सारी कथा ही मालविका के पदाघात से अशोक को पुष्पित करने की क्रिया को केंद्र बना कर रची हुई है।
मदनोत्सव में कामदेव की अभ्यर्थना के पश्चात अशोक को पुष्पित करने की क्रिया विस्तार से वर्णित है मालविकाग्निमित्र में। सामान्यतः होता यही है कि कोई सुन्दर स्त्री अपने समस्त श्रृंगार के साथ, पैरों में अलक्तराग और नूपुर सजा कर, हाथों में अशोक के पल्लव के गुच्छे पकड़कर अपने बायें पैर से अशोक वृक्ष पर आघात करती है। अशोक नूपुर-ध्वनि से उल्लसित होकर अपने कंधे पर ही फूल उठता है। इस मादक क्रिया को अपनी लेखनी से और मादक बना दिया है कालिदास ने।



वैज्ञानिक दृष्टि डालें तो अशोक में कई जैव-सक्रिय पदार्थ पाये जाते हैं। मुख्यतः टैनिन्स, कैटेकाल, इसेन्शियल आयल, हिमेटॉक्सिलीन, ग्लाइकोसाइड, सौपोनिन्स, कैल्शियमयुक्त कार्बनिक यौगिक और लौह खनिजयुक्त कार्बनिक यौगिक। आधुनिक वैज्ञानिक मत कहते हैं कि अशोक की छाल का निष्कर्ष गर्भाशय को उत्तेजित करता है। इसके प्रयोग से गर्भाशय की संकुचन दर बढ़ जाती है और यह संकोचन अधिक समय तक बना रहता है। ऐलोपैथिक संश्लेषण औषधि की अपेक्षा इसका प्रभाव हानिरहित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने अशोक की त्वचा में कुछ ऐसे संघटकों की खोज भी की है, जो कैंसर का होना रोकते हैं।
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# वृक्ष-दोहद के बहाने वृक्ष-पुष्प की यह चर्चा जारी रहेगी……किंचित अगला पड़ाव अमलतास होगा ।