आज तुलसी जयंती है । इन पंक्तियों के साथ इस विराट पुरुष का स्मरण कर रहा हूँ –
अहो, नंदन विपिन की विटप छाया में विराजित कवि
मुरलिका बन्द कर दो छेड़ना अब रुद्र रव लाओ
प्रलय है पल रहा हर घर लगी है आग हर कोने
तुम्हारी याद आती है चले आओ, चले आओ ।
लगा दो फिर अयोध्यानाथ के आ माथ पर चन्दन
यहाँ विध्वंस लीला शीर्ष पर, अब वन न मनसायन
हथेली एक ही कर कीं परस्पर लड़ रहीं, शोणित-
पिपासा में स्वजन रत, कवि रचो अब नवल रामायण ।
नहीं अकबर सही, लेकिन वही श्रावण, वही भारत
तुम्हारा पाञ्चजन्य निनाद स्तंभित क्यों महाबाहो !
विनय की पत्रिका लेकर तुम्हारे पास आया हूँ
हमारी प्राण-वीणा पर बजा लो गान जो चाहो ।
आ पथ दिखला दो सभी कहें अब यहाँ नहीं दख द्वंद्व रहे
तुलसी की जय, तुलसी की जय- यह नारा सदा बुलंद रहे ॥
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तुलसी के विनय के पद उत्कृष्टतम अभिव्यक्ति के उदाहरण हैं । यह भजन सुनें और सप्रेम तुलसी स्मरण करें –
आ पथ दिखला दो सभी कहें अब यहाँ नहीं दख द्वंद्व रहे
तुलसी की जय, तुलसी की जय- यह नारा सदा बुलंद रहे ॥
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आभार्
कल ही पत्नीजी से चर्चा हो रही थी – क्या गजब लिखे हैं बाबा तुलसीदास। भूत-वर्तमान-भविष्य में अतुलनीय!
sundar rachana aur geet
तुलसी बाबा तो भारतीय जनमानस में जन जन की जबान पर छाये हुये हैं..प्रणाम उनको..आपको बहुत धन्यवाद.
रामराम.
अत्यन्त मन भावन
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा
सुंदर स्मरण कविता। आभार।
तुलसी की जय, तुलसी की जय
-आपका साधुवाद.
तुलसी जयंती पर इतनी सुन्दर रचना के लिए आभार !
तुलसीदास जी की जय हो.
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! तुलसी जयंती पर बहुत ख़ूबसूरत और मन भावन रचना लिखा है आपने! मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !
तुलसी जयंती की शुभकामनाएं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तुलसी जयंती पर इतनी सुन्दर रचना .