हिन्दी साहित्य के उज्ज्वल नक्षत्र राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्त का जन्मदिवस है कल। प्रस्तुत है उनका प्रसिद्ध और विख्यात गीत, ’सखि वे मुझसे कह कर जाते!’ पढ़े भी और सुनें भी।
मैथिली शरण गुप्त का गीत – सखि वे मुझसे कह कर जाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में –
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
कवि और लेखकों के जन्मदिवस की याद के लिए ….आभार।
कविता फिर से ताजा हो गयी ..!!
मानस-भवन में आर्य-जन जिसकी उतारें आरती,
भगवान भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती॥ – गुप्तजी
GUPT JI KA YE GEET BAHUT HI MANBHAVAN HAI ………AAJ AAPNE PURANI YAADEIN TAAZA KAR DI…….KABHI ISI GEET KO MAINE FAREWELL KA HISSA BANAYA THA.AABHAR.
कालजयी रचना ! मगर आपका स्वर होता तो बात ही और कुछ होती !
बहुत धन्यवाद इस कालजयी रचना के लिये.
रामराम.
सदा बहार कविता। बचपन में पढी कवित्ता की पुनः याद दिला दी। आभार॥
सुन्दर आलेख. राष्ट्रकवि के जन्मदिवस पर उनकी याद दिलाने के लिए धन्यवाद.
राष्ट्रकवि के जन्मदिवस पर उयाद दिलाने के लिए धन्यवाद.सुन्दर आलेख..
अनुपम…
पढ़ा तो पहले भी था, सुनना अद्भुत रहा. आभार.