Mandar

मुझे क्षण-क्षण मुग्ध करती, सम्मोहित करती वृक्ष दोहद की चर्चा जारी है। मंदार की चर्चा शेष थी अभी। कैसा विश्वास है कि वयःसंधि में प्रतिबुद्ध कोई बाला यदि बायें पैर से अशोक को लताड़ दे (मेंहदी लगाकर), या झुकती आम्र-शाख पर तरुण निःश्वांस छोड़ दे, स्मित बिखेर दे चम्पक के सम्मुख, गुनगुनाये नमेरु के लिये, आदि, आदि तो उसकी मुराद उसी वक्त पूरी हो जाती है। फलित हो जाता है कन्या का दोहद। प्रकृति भी संकेत देती है। वृक्ष की शाखें मौसम-बेमौसम सीधे फूलों से लद जाती हैं-

पादाघाताद् अशोकः, तिलकवुरबकौ वीक्षणा-ऽलिंनभ्याम्,
(स्त्रीणां) स्पर्शात् प्रियंगुः, विकसित बकुलः सीधुगण्डूषसेकात्,
मन्दारो नर्मवाक्यात्, पटुमृदुहासनात् चम्पको, वक्त्रवातात्
चूतो, गीताद् नमेरुर्, विकसति च पुरो नर्तनात् कर्णिकारः॥

वृक्ष-दोहद की चर्चा में मंदार तक आ पहुँचा हूँ। चिन्तन की जीभ लपलपा रही है। सोचता हूँ, रमणियों की यह अन्यान्य क्रियायें- पैरों की लाली, बाँकी चितवन, अयाचित मजाक, गाना-गुनगुनाना, इठलाना, मुस्कराना, निःश्वांस-उच्छ्वास- क्या ये कामिनियों के बाण हैं- और ये खुल-खिल जाने वाले आम्र,अशोक, प्रियंगु, नमेरु, कर्णिकार, मंदार- क्या इस बाण से पहली ही नजर में घायल चरित्र हैं, अवतार हैं? संस्कृत कवि-सम्प्रदाय व अन्योक्तियों में रस सदा इसी कोमलता या श्रृंगाराभास के आरोप से ही आता है न!

देवताओं का प्रिय पुष्प मंदार

मंदार देवताओं का प्रिय पुष्प है। भूत-भावन शिव की अर्चा का साधन यह पुष्प देवराज इंद्र के नन्दन कानन के पंच-पुष्पों में से एक है- अलकापुरी में सदा शोभित। कुमारसंभव में महाकवि ने इंद्र और मंदार दोनों को शिव-चरणाश्रित उल्लिखित किया है-

“असम्पदस्तस्य वृषेण गच्छतः प्रभिन्न दिग्वारणवाहनो वृषा ।
करोति पादावुपगम्य मौलिना विनिद्रमन्दाररजोऽरुणांगुलि ॥”

[“ऐरावतवाहन इन्द्र भी उस वृषभारूढ़ हर के चरण पर अपने सकिरीट मस्तक को अवनत करता है तथा मंदार वृक्ष की पुष्प रज से हर के चरणों को सर्वदा रंजित करता है ।”]
मदार

मंदार का एक नाम अर्क भी है। शिव का प्रिय, इसलिये विषयुक्त। फारसी में ’दरख्ते जहरनाक”। क्या यही दरख्ते जहरनाक अलकापुरी के प्रिय पुष्पों में से एक है? ’रघुवंश ’में उल्लेख है कि मंदार के पुष्पों को इंद्राणी अपनी अलकों में सुशोभित करती थीं। ’शाकुंतलम’ में वर्णित है- इंद्र ने दुष्यंत को मंदार-माला दी थी। क्या इसी ’आक’ या ’अर्क’ के पुष्पों की माला? शायद नहीं।

कालिदास का मंदार ‘अर्क’ या ‘आक’ नहीं बल्कि दूसरा है। कुछ-कुछ वनस्पतिशास्त्रियों का जाना-पहचाना ’कोरल-ट्री’ जैसा। कालिदास जिस पुष्प का वर्णन करते हैं उसमें पुष्पों के स्तवक (गुच्छे) हैं। ’ब्रांडिस’ ने भी अपनी पुस्तक ’इंडियन ट्रीज’ (Indian Trees) में मंदार का जो चित्र दिया है उसमें पुष्पों के स्तवक हैं। कालिदास का मंदार बड़ा नहीं होता। हाँथ से छुए जा सकने वाले आकार का वृक्ष। कुछ पीले भूरे पुष्प और उनमें गोल-गोल बैंगनी रंग-से छोटे-छोटे स्तवक।

कालिदास के साहित्य में उल्लेख

कवि-प्रसिद्धि है कि मंदार रमणियों के नर्म वाक्यों से पुष्पित होता है- ’मंदारो नर्मवाक्यात”। कालिदास ने इस विश्वास की पुष्टि की है। इस मोहक पुष्प से कामिनियों का प्रेम विलक्षण है। ’कुमारसंभव’, ’रघुवंश’, ’शाकुंतलम’, ’विक्रमोर्वशीय’, मेघदूत- सबमें महाकवि कालिदास ने इस पुष्प का वर्णन किया है।

अलकानगरी की अभिसारिकायें रात्रि में प्रियतम के समीप गमन करती हैं, क्षिप्रता में वेणियों से सरक जाता है मंदार का पुष्प-

“गत्युत्कन्पादलकपतितैर्यत्र मन्दारपुष्पैः
पत्रच्छेदैः कनककमलैः कर्णविभ्रंशिभिश्च …..”

मेघदूत में ही मेघ को अपने घर का पता देता यक्ष मंदार के उस छोटे वृक्ष को नहीं भूलता जिसे उसकी भार्या (यक्षिणी) ने सस्नेह संवर्धित किया है –

“….तस्योपान्ते कृतकतनयः कान्तया वर्धितो मे
हस्तप्राप्यस्तवकनमितो बाल मन्दार वृक्षः।”

मंदार के औषधीय गुण

अलकापुरी का मंदार, कवियों का वर्णित मंदार पता नहीं हमारे आस-पास दिखते मंदार का सहरूप है या नहीं, पर उष्ण एवं शुष्क प्रदेशों  में पाये जाने वाला आज का परिचित मंदार भी कम महत्वपूर्ण नहीं। मंदार 3 से 9 फुट उँचे वर्षानुवर्षी या बहुवर्षायु तथा बहुशाखी क्षुप होते हैं जो एक प्रकार के दुग्धमय एवं चरपरे रस (Acrid Juice) से परिपूर्ण होते हैं। कोमल शाखायें धुनी हुई रुई की तरह सफेद रोयें से घनावृत्त, पत्तियाँ छोटे डंठलों वाली, अभिलट्वाकार (Obovate)  अधस्तल पर रुई की भाँति रोमावृत तथा पुष्प बाहर से सफेद तथा भीतर बैंगनी रंग के होते हैं।

लघु-रुक्ष-तीक्ष्ण गुण, कटु-तिक्त रस, कटु विपाक, ऊष्ण वीर्य, वेदनास्थापन, शोथघ्न, व्रणशोधन, कुष्ठघ्न, वामक, श्वांसहर आदि प्रधान कर्म वाले इस वृक्ष का सबसे प्रभावकारी अंश इसमें पाये जाने वाला चरपरा पीला राल होता है। मंदार के यह पुष्प सालभर में कभी फूल-फल से खाली नहीं रहते किन्तु अपेक्षाकृत जाड़ों में अधिक फलते-फूलते हैं।

# मदार के पत्तों पर विशिष्ट टिड्डों के चित्र यहाँ मिलेंगे


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