वहाँ देखो,
एक पेंड़ है जगमगाता हुआ
उसकी शाखो में चिराग फूलते हैं,
मदहोश कर देने वाली गंध-सी रोशनी
फैलती है चारों ओर,
आइने-से हैं उसके तने
जिनमें सच्चापन निरखता है हर शख़्स
और अशआर की तरह हैं उसकी पत्तियाँ
काँपती हुई ।
मुझे देखो,
मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
..ओह तो हममे कितनी असंख्य सी सम्भावनाये है ना, हिमांशुजी…हम में हो न हो पर आपमें निश्चित ही हैं…दीवाली की जबरदस्त शुभकामनायें….
वहाँ देखो,
एक पेंड़ है जगमगाता हुआ
उसकी शाखो में चिराग फूलते हैं,
मदहोश कर देने वाली गंध-सी रोशनी
फैलती है चारों ओर,
आइने-से हैं उसके तने
हिमांशु भाई सब कुछ देख रहा हु और आपका लेखनी भी
बहुत खूब आपका कविता मस्त है
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
ये दिल मे पैबश्त बीज ही तो है जो फल दे रहे है.
कविता पर टिप्पणी करने लायक योग्यता मेरी नही है ..नया टेम्पलेट बढ़िया लगा.
चिराग…
रोशन होगा..
आभार ।
मुझे देखो,
मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
हिमांशू जी आप बहुत ही सुंदर लिखते है,हमे तो अपने तारीफ़ के शव्द भी बॊने लगते है, यानि कम पडते है. बस हम तो कहे गे धन्यवाद
बेहद खुबसूरत रचना /दिवाली पर एक खुबसूरत रचना का उपहार…..धन्यवाद!
कविता हिमांशु की और चित्र सल्वाडोर डाली की किसी कृति की याद दिलता हुआ !
बहुत ही खूबसूरत रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
माधुर्य!
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इबारत, इशारत , अदा , पैबस्त …कई नए शब्द जुड़ गए हैं नए अंदाज की नए रंग बदलती कविताओं में …ये अंदाज भी लुभावना है …!!
मुझे देखो,
मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
accha hai ji…
सुंदर बिम्ब, सुंदर अभिव्यक्ति।
( Treasurer-S. T. )
समूची सृष्टि ही मनुष्य के अंतस का प्रक्षेपण है क्यों कि मनुष्य से बेहतर कुछ आ नहीं पाया। शायद जब आए तो सृष्टि भी जैसी दिखती है वैसी न रहे।….
तो भई, यह खूबसूरत पेंड़ भी आप की भावना का ही प्रक्षेपण है।
महज अच्छा है, सुंदर है कह कर निकला जाना कितना अन्याय होगा इस अप्रतिम रचना के साथ।
"और अशआर की तरह हैं उसकी पत्तियाँ काँपती हुई…" आप हर बार अचंभित करते हो हिमांशु जी।
फिर से पढ़ा और अब आपका टैग-लाइन दोहराता जा रहा हूँ…
अभी कुछ और डूबो मन, अभी कुछ और डूबो…
अच्छा है !
इस बीज में अनगिनत सम्भावनायें है .. यह जंगल में तब्दील हो यह कामना ।
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निर्मला कपिला जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी –
मुझे देखो,
मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
अद्भुत अभिव्यक्ति है धन्यवाद शुभकामनायें
मुझे देखो,
मेरे दिल की इबारत, इशारत, अदा देखो !
उस जगमगाते पेंड़ का बीज
इस दिल में ही पैवस्त है ।
हिमाँशू जी धन्यवाद । इस कविता के लिये बहुत कुछ है कहने को मगर इतने शब्द मेरे पास नही पेडकी उपमा अद्भुत उस पर उसे अपने दिल से जोडना और सुन्दर लाजवाब अशआर सी रचना बन गयी है। मेल से कमेन्ट भेज कर मन को सं तोश नहीं हुया फिर से चली आयी। धन्यवाद।