My desires are many and my cry is
pitiful, but ever didst thou save
me by heart refusals; and this strong
mercy has been wrought into my
life through and through.

Day by day thou art making me worthy
of the simple great gifts that thou
givest to me unasked-this sky
and the light, this body and the life
and the mind-saving me from
perils of over-much desire.

There are times when I languidly
linger and times when I awaken
and hurry in search of my goal;
but cruelly thou hidest me thyself
from before me.

Day by day thou art making me
worthy of thy full acceptance by
refusing me ever and anon, saving
me from perils of weak, uncertain desire.

–(Geetanjali : R.N. Tagore)

मेरी अमित हैं वासनायें, है अमित मेरा रुदन
स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन ।

मुझ पर यही करते रहे हो बार-बार कृपा प्रभो !
प्रति दिवस अपने योग्य करते इस प्रकार बचा प्रभो
महनीय शुचि उपहार देते जो बिना याञ्चा कथन-
स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन ।

यह दिन दिया, यह द्युति दिया ऐसी दिया काया भली
ऐसा दिया मस्तिष्क प्रभु हो धन्य दी जीवन गली
मुझको न होने दिया मलिना वासनाओं का सदन –
स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन ।

आया समय उर को मलिन जब तुच्छ इच्छा ने हरा
जब मैं सजग निज लक्ष्य पाने हेतु दिखलायी त्वरा
तुम दृष्टि ओझल हो गये तत्काल उस क्षण मति प्रवण –
स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन ।

सम्पूर्ण स्वीकृति योग्य प्रतिदिन प्रभु बनाते हो मुझे 
दुत्कार मलिना तुच्छ इच्छायें सजाते हो मुझे
स्वीकृत नहीं करते विनश्वर वासना ’पंकिल’ सुमन
स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन ।

–(’पंकिल ’- मेरे बाबूजी )