जिन्दगी ज़हीन हो गयी
मृत्यु अर्थहीन हो गयी ।
रूप बिंध गया अरूप-सा
सृष्टि दृश्यहीन हो गयी ।
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
टूट गयी सहज बाँसुरी
व्यथा तलफत मीन हो गयी ।
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
जिन्दगी ज़हीन हो गयी
मृत्यु अर्थहीन हो गयी ।
रूप बिंध गया अरूप-सा
सृष्टि दृश्यहीन हो गयी ।
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
टूट गयी सहज बाँसुरी
व्यथा तलफत मीन हो गयी ।
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
बहुत बेहतरीन लगी यह पंक्तियाँ
sundar prastuti.
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
वाह द्विधा विकल्पहीन हो गयी…लाजवाब कहा!
शुभकामनाएं.
रामराम.
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, बधाई ।
रूप बिंध गया अरूप-सा
सृष्टि दृश्यहीन हो गयी ।
behad sundar bhaaw…………yaha prakriti se jodana bhaw me char chand laga diya banduwar.
किसे बांधू कहाँ बंधू …द्विधा विकल्पहीन हो गयी …कुछ असहज सी लगी ये पंक्तिया …अज्ञातवास का असर है अभी ….खोल से बाहर निकलें … मुक्त रहें …!!
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
सुन्दर लगा ये कविता …आभार आपका
वाह यह कविता पढ़ते ही तन्द्रा क्षीण हो गयी!
तभी टिप्पणी लिख पा रहे हैं!
विकल्पहीनता की अध्यात्मिक कविता !
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
लाजवाब…क्या शब्द प्रयुक्त किये हैं आपने…बधाई…
नीरज
बिना विकल्प की दुविधा ! वाह !
waah!….waah….bahut gahre bhaw chhoti bahar aur…aur bejod ghazal
orkut ब्लॉग की sidebar में
जबरदस्त अभिव्यक्ति!! सुन्दरतम!!
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
अति सुंदर !
are tunna bhaiya hamhu ke e blag slag sikha deta t hamhu sabke maisjva bhejal karti samjhla.achcha jayda guru sikh jaeb.aaur btava.ka hal chal h.jammu jat hae.khub badiya photo khech ke liyaeb t toke deb.achcha namskar.tohar chot bhae kishan.
गिरिजेश जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी –
@..ज़हीन हो गई
अद्भुत! क्या कहें, एक एक पंक्ति जाने कितने अर्थ समेटे हुए है!
आप से यही अपेक्षा थी।
आभार ।
प्रबल प्रताप सिंह ने भी एक टिप्पणी ई-मेल से की –
जिन्दगी ज़हीन हो गयी
मृत्यु अर्थहीन हो गयी ।
बहुत गर्भित लाइनें है……..!!
बहुत ही सुंदर गजल कही है। गागर में सागर।
——————
परा मनोविज्ञान-अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
फोटो तो कुछ जानी पहचानी है !
कविता नयी है !भाव भी !
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
bahut achhi lagin yeh panktiyan….
हिमांशु भाई….
बहुत दिनों बाद आप आये हैं….
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी
हम तो ये कहेंगे कि आप बाँध भी लीजिये और बंध भी जाइए…
अगर आप उसी दुविधा की बात कर रहे हैं तो….दो विकल्प तो हैं हीं….
और अगर इसका कोई और अर्थ है तो बता दीजिये….हिंदी में मेरा हाथ थोडा सा तंग है जी…
लेकिन ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर बनी है, बहुत सुन्दर का मताब बहुत ही सुन्दर…
आपकी कमी खल रही थी हिमांशु जी…और हमेशा की तरह मनमोहक शब्दों से सजी आपकी पंक्तियां छू गयीं अंतर्मन को।
कसे छंद, कोमल भाव…लाजवाब!
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
सुन्दर भावों के साथ-साथ एकदम परफ़ेक्ट मीटर आपकी रचना को एक अलग कलेवर प्रदान करते हैं.
acche bhaav aur acchi rachna…
भाव तो अभाव मे बढा
जनता क्यो गमगीन हो गयी
रोटी की फ़िक्र क्यो ना करे
भाषण भी महीन हो गयी
ये तो आपकी पैरोडी कर डाली है वैसे जहीन शब्द शुद्ध हिन्दी के साथ मुझे जमा नही भावाभिव्यक्ति सुन्दर है