कल की ना-ना तुम्हारी –
मन सिहर गया, चित्त अस्थिर
आगत के भय की धारणायें,
कहीं उल्लास के दिन और रात झर न जायें
फिर उलाहना –
क्या यह प्रेम प्रहसन ?
रही विक्षिप्त
अंतः-बाह्य के निरीक्षण में व्यस्त,
नहीं दिखी त्रुटिपूर्णा मैं खुद को,
फिर क्षोभ –
नायक या खल-नायक ?
छोड़ गये सारंगी-सा, जिसके
टूट गये हों तार हृदय-से
फिर उपालंभ –
क्या मिली कोई लज्जाहीना ?
अभिव्यक्त देंह से, इंद्रजाल की मलिका
तुम्हें क्या ? यहाँ अनमनी, अश्रु-मुखी
कैसे रहती है ?
फिर अश्रु-अर्घ्य –
“पुकारती रही, किन्तु किंचित शून्य में!
तड़पती हूक, अन्तर का भूचाल,
देंह की धरित्रि का कँपना – देख न सके “
फिर समर्पण –
“पता है -यह तुम्हारी खेचरी मुद्रा!
यदि सहन होगा विरह-दारुण,
सुलभ संयोग होगा स्फूर्तिकर !”
“समझ आया – प्रलय के दृश्य में भी
सृजन हँसता है, विहँसता है ।
फिर यह रहा स्वीकार –
सम्मुख शब्द-मौन, विश्वस्त-हृदय
अधरों में सम्पुटित अधर,
समाधि में वक्षस्थलों पर स्थित चेतनस्थ कर ।
चित्र : First People से साभार
भाई उम्दा लगी कविता पर मुझे थोड़ी कठिन भी लगी..
अनुग्रहीत हुआ आचार्य !
प्रेम के विभिन्न सोपानों को समेट दिया आप ने। सबसे बड़ी बात कि यह प्रेम मानवीय और सूफियाना (भाई भेद करने के लिए दूसरे शब्द नहीं मिले, मुझे पता है इनमें गड़बड़ है) दोनों को स्पर्श करता है।
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ऐसी कविताएँ पाठक की अभिरुचि को संस्कृत करती हैं।
@ फिर यह रहा स्वीकार –
सम्मुख शब्द-मौन, विश्वस्त-हृदय
अधरों में सम्पुटित अधर,
समाधि में वक्षस्थलों पर स्थित चेतनस्थ कर ।
जाने क्यों शक्तिपूजा का छन्द याद आ गया :
संचित त्रिकुटी पर ध्यान द्विदल देवी पद पर
जप के स्वर लगा नाचने अम्बर थर थर थर।
आह!
वाह क्या खूब है।
बहुत सुंदर लेकिन कठिन लगी आप की यह कविता, बहुत गूढ शव्दो मे लिखी है प ने . धन्यवाद
"समझ आया – प्रलय के दृश्य में भी
सृजन हँसता है, विहँसता है ।''
बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ये |
प्यारी कविता …
आभार … .
कह सकती हूँ ..अब तक पढ़ी गई आपकी कविताओं में सबसे अच्छी लगी.
आपकी कविता…!!
निशब्द हूँ..
प्रेम के आगाज़ से अंजाम तक सफ़र….वाह क्या बात है…!!
प्रेम यात्रा का काव्यात्मक विवरण लाजवाब है …!!
BAHOOT KAMAAL KI RACHNA ….PREM KE VIBHINN PAHLUON KO BAHOOT KOMALTA SE CHUA HAI AAPNE ……….
बहुत ही सुन्दर पंक्तियों से सजी यह लाजवाब प्रस्तुति, बधाई ।
आपके शब्द और भाव…मौन कर देते हैं….क्या कहूँ…वाह…
नीरज
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
हिमांशु भाई, आप भी गजब लिखते हो। शीर्षक और फोटो देखकर सोचा था रूमानी कविता है आनंद आएगा, पर यहाँ पर भी टिक्सनरी की जरूरत पड रही है। जब हिन्दी में एमए करने वाले का यह हाल है, तो बाकी जनों का क्या होता होगा।
कुछ तो ख्याल रखा करो भाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
विभिन्न आयामों को समेटे हुये उत्तम रचना !
धन्यवाद !