In the night of weariness let me give
myself up to sleep without struggle,
resting my trust upon thee.
Let me not force my flagging spirit into
a poor preparation for thy worship.
It is thou who drawest the veil of night
upon the tired eyes of the day to renew
its sight in a fresher gladness of awakening.
इस थकानमय निशि में प्रिय तव विश्वासी मन बन
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन ।
बाध्य मुझे मत करने दो ये मंद प्राण खाली
दीन सजाने चलें तुम्हारी पूजन की थाली
श्रमित उनींदे नयन करेंगे कैसे अलंकरण –
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन ।
अद्भुत!!!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर भावानुवाद…
कितना कुछ याद आ गया….जन्मदिन में उपहारस्वरूप भाई ने गीतांजली दी थी…जाने कब से नहीं पढ़ी…..शुक्रिया इतनी ख़ूबसूरत कविता पढवाने का.
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन …
सुन्दर भावानुवाद …..
पंकिल जी का आभार …
करुणावतार कब जागेंगे नींद से ..??
bahut hi sundar bhavanuwaad…hridayangam..
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बेहतरीन प्रस्तुति ।
यह है सार्थक ब्लोगिंग,धन्यवाद बन्धु.
सुन्दर !!!!!!
ये इस ब्लॉग की सभी रचनाएं अद्भुद और साहित्यिक रस से पगी हुई हैं ….. मै आत्म विभोर हो रहा हूँ पढ़ कर … आनंद में गोते लगा रहा हूँ … ऐसे ब्लॉग अक्सर उपेक्षित से भले लगें पर यही तो हिन्दी ब्लोगिंग की असली थाती हैं ….
बाक़ी तो कोरी लफ्फाजी से भरे ब्लॉग तो मदारी की डुगडुगी से ज्यादा कुछ नहीं … जों मजमा ही लगाते दीखते हैं … सार बहुत कम मिलता है
बधाई