In the night of weariness let me give
myself up to sleep without struggle,
resting my trust upon thee.

Let me not force my flagging spirit into
a poor preparation for thy worship.

It is thou who drawest the veil of night
upon the tired eyes of the day to renew
its sight in a fresher gladness of awakening. 

–(R.N.Tagore : Geetanjali ) 



इस थकानमय निशि में प्रिय तव विश्वासी मन बन 
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन ।

बाध्य मुझे मत करने दो ये मंद प्राण खाली
दीन सजाने चलें तुम्हारी पूजन की थाली 
श्रमित उनींदे नयन करेंगे कैसे अलंकरण –
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन ।

थकित दिवस दृग पर रख पंकिल निशि अवगुण्ठन चीर
और कौन तुम ही तो हरते हो वासर की पीर 
नव स्फूर्जित दृग खोल देखता जो जागरण शयन-
निद्रा की गोदी में करने दो निर्द्वंद्व शयन ।
–(‘पंकिल’ : मेरे बाबूजी)