शैलबाला शतक: भोजपुरी स्तुति काव्य के चार और कवित्त प्रस्तुत हैं! करुणामयी जगत जननी के चरणों में प्रणत निवेदन हैं कवित्त! शतक में शुरुआत के आठ कवित्त काली के रौद्र रूप का साक्षात दृश्य उपस्थित करते हैं। पिछली तीन प्रविष्टियाँ सम्मुख हो चुकी हैं आपके। शैलबाला-शतक के प्रारंभिक चौबीस छंद कवित्त शैली में हैं। शेष सवैया छंद में रचे गए हैं। क्रमशः प्रस्तुतियाँ शैलनन्दिनी के अनगिन स्वरूप उद्घाटित करेंगी। प्रविष्टि में बाबूजी की ही आवाज में इन कवित्तों का पाठ भी प्रस्तुत है।

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शैलबाला शतक: कवित्त 13-16

कोमल कोमल अँगुरिन कै पोर मोरे पलकन पर
फेरि फेरि पंकिल के जननी जगवले जा
अइसन गुनवन्ती माई पाइ दुबराईं काहें
दुखिया के नेह कै मलाई चभवले जा
काहें करेजवा कठोर कइ के बइठल हऊ
अम्ब अपने दुधवा कै लजिया बचवले जा
आवा आवा अम्मा अपने बेटा कै बॉंह गहा
बोला बतियावा खेलावा दुलरवले जा॥१३॥

बरम्हा तोहरे दुअरे कर जोर मुँह जोहल करैं
नाच गड़थइया तूँ नचाय देलू भोला के
जगपालक हरि के जोगनिद्रा में सुताय देलू
अॅंगुरी पर नचावल करैलू सृष्टि गोला के
ढरैलू तब करुना कै अथाह सिन्धु बन जालू
कोपै लू रण में तब तोहरे आगे होला के
सुत बेसहारा के मतारी कै बल होला
एको बेर देख लेतू पंकिल के झोला के ॥१४॥

तोहरै अवलम्ब जगदम्ब हौ विशाल हमैं
लेलू तूं उबार केतनो भारी विस्फोट में
कहहू के परै न अपने आप पलक झॅंप जाले
जग जननी ऑंखिन के पुतरी की चोट में
काहूँ भॉंति राखा पर दाहिन दयाल रहा
पंकिल पगला के हर परिस्थिति बड़ छोट में
आपन नेह चारा बेसहारा के चूँगावल करा
दुखिया के रखा अम्मा अॅंचरा की ओट में॥१५॥

कॉंहें बदे माई महटियाइल हऊ बेटा तोहार
कींचड़ में परल करत छपर छपर हौ
कौने दिन खातिर रोक रखले हऊ केकरे बदे
उर में जवन तोहरे बहत करुना निर्झर हौ
कबौं नाहिं कतहॅूं अस सुनल गयल जग जननी
कौनो महतारी कै करेजा बज्जर हौ
दुअरे ठाढ़ पंकिल गोहार करै दुर्गा माई
देखा बम्हना कै कवनों दूसर नाहिं घर हौ॥१६॥


काठिन्य निवारण

अँगुरिन- अँगुलियाँ; दुबराईं- दुबला होना/कृश होना; चभवले- छक के खिलाना; ढरैलू- करुणायुक्त होना; कोपै- क्रोधयुक्त होना; मतारी/महतारी- माँ; महटियाइल हऊ- उदासीन हो; बज्जर-वज्र; गोहार करै- पुकारना; बम्हना-ब्राह्मण।

क्रमश:………