(Photo credit: MarianOne) आज फिर एक चहकता हुआ दिन गुमसुमायी सांझ में परिवर्तित हो गया, दिन का…
दिन गये, तो ठीक न गये, रुके रहे तो और भी ठीक। रात गयी, तो ठीक न…
विश्वास के घर में अमरुद का एक पेंड़ था एक दिन उस पेंड़ की ऊँची फ़ुनगी पर…
अगर कभी ऐसा हो कि कहीं मिल जाओ तुम तो पूछने मत लगना वही अबूझे, अव्यक्त प्रश्न…
काश! मेरा मन सरकंडे की कलम- सा होता जिसे छील-छाल कर, बना कर भावना की स्याही में…
(१) “बहुत दूर नहीं बहुत पास “ कहकर तुमने बहका दिया मैं बहक गया । (२) “एक,दो,तीन…..नहीं…