कई बार ब्लॉग की जरूरत और गैर जरूरत को लेकर मित्रों से चर्चा हुई। हिन्दी भाषा में ब्लॉग लिखने को लेकर कई शंकाएँ हैं मित्रों के मन में जो मिटती ही नहीं। सबसे बड़ा सवाल उनके मन में मेरे ब्लॉगर बनने की जरूरत को लेकर था। उन्हें यह जल्दबाजी लगती थी कि मैं औसत तकनीकी और कम्प्यूटर ज्ञान वाला आदमी जिसे ठीक ठीक कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखने में भी परेशानी होती है, हिन्दी में ब्लॉग लिखने लगा। मैं उन्हें समझाता रहा और वे समझने से बचते रहे-

“चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था
जो बचेगा
वो कैसे रचेगा।” (श्रीकांत वर्मा )
मैं उन्हें कैसे बताता कि मैं जिस पर चला हूँ वह कुछ अजानी है, पर मेरी अपनी चुनी हुई खालिश अपनी राय। कब तक सुनता रहूँगा मैं अपनी रचनाओं को रचने के मंत्र विधान, तुम्हारे फतवे। कैसे कहूं मैं कि इन रचनाओं का आग्रह जमीनी तौर पर ख़ुद का आग्रह है, आयातित नहीं। यह रचनाएँ स्वतः-स्फूर्त संवेदनाओं का प्रतिफलन हैं। तो जरूरी नहीं कि ये हर उस परिपाटी पर चलें ही जिस पर चला है जमाना या फिर तुम। मित्रों के ये कथन क्यों न झूठे हो जाएँ कि इन्टरनेट का पाठक वर्ग गंभीर नहीं और न ही इन्टरनेट पर लिखने वाला लेखक या रचने वाला रचनाकार। मैं यह भी कैसे कहूं कि मैं उस संपूर्ण लेखकीय एवं पाठकीय गरिमा के साथ इस यात्रा के लिए आ खड़ा हुआ हूँ। यदि तकनीक एवं संसाधन नहीं हैं तो भी विकास कि संभावना तो कहीं नहीं गयी। यदि हिन्दी में लिखना हास्यास्पद है तो भी क्या दिन नहीं बदलेंगे? और यदि मैं रुक भी गया तो क्या वक्त रुक सकेगा? सच कह रहा हूँ मैं कि आइना बनकर दूसरे को अपने को संवारने का मौका देने सच चला हूँ इस राह पर। और यदि अब नहीं तो कब?

Last Update: September 17, 2022