The poem “If thou speakest not I will fill my heart with thy silence” is a poem in Rabindranath Tagore’s renowned collection Gitanjali. This poem is a beautiful expression of faith and hope, with the belief that patience will be rewarded with the beloved’s voice, which will bring life and song to the world. 

Original Text of the Song

If thou speakest not I will fill my heart with thy silence and endure it.

I will keep still and wait like the night with starry vigil and itshead bent low with patience.

The morning will surely come,the darkness will vanish, and thy voice pour-down in golden streams breaking through the sky.

Then thy words will take wing in songs from every one of my birds’ nests,

and thy melodies will break forth in flowers in all my forest groves.


‘नहीं बोलते प्राणधन यदि हमारे’ यह गीत रबींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध संग्रह गीतांजलि में संग्रहित है। यह कविता विश्वास और आशा की सुंदर अभिव्यक्ति है, जिसमें यह विश्वास है कि धैर्य का फल प्रियजन के मधुर स्वर के रूप में मिलेगा, जो दुनिया में जीवन और संगीत लेकर आएगा। गीतांजलि के लिए गुरुदेव टैगोर को साहित्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Hindi Translation by Prem Narayan Pankil

नहीं बोलते प्राणधन यदि हमारे
तुम्हारा यही मौन उर बीच भरकर रहूँगा सहनशीलता शान्ति धारे .. 

परम मौन मैं शान्ति धारण करूंगा
प्रतीक्षा करूंगा,प्रतीक्षा करूंगा
उसी यामिनी सी स्थिरा शांत कोने, विनत सिर खड़ी जो सजाये सितारे –
नहीं बोलते प्राणधन यदि हमारे।

करेगा चरण न्यास प्रातः असंशय
न होगी प्रकट दृश्य क्षणिका तिमिरमय
तुम्हारी गिरा हेम स्रोतस्विनी सी बहेगी, गगन के शिथिल कर किनारे-
नहीं बोलते प्राणधन यदि हमारे। 

सपंखी विहंगम सदृश गीत बनकर
उडेंगे मेरे नीद-चय से तेरे स्वर
तुम्हारे मधुर स्वर मेरे कुञ्ज वन के, सुमन प्रति सुमन में रहेंगे पधारे-
नहीं बोलते प्राणधन यदि हमारे।