On the day when the lotus bloomed is a poem written by Rabindranath Tagore, a prominent Indian poet and philosopher who won the Nobel Prize in Literature in 1913 for his work Gitanjali. This poem, like many others in “Gitanjali,” invites readers to reflect on their own spiritual journey and the realization of inner truths.
Original Text of the Poem
On the day when the lotus bloomed,
Alas,my mind was straying , and I
knew it not . My basket was empty
and the flower remained unheaded.
Only now and again a sadness fell
upon me , and I started up from
my dream and felt a sweet trace of
a strange fragrance in the south wind.
That vague sweetness made my heart-ache
with longing and it seemed to me
that it was the eager – breath of the
summer seeking for its complition .
I knew not then that it was so near,
that it was mine , and that this
perfect sweetness had blossomed in
the depth of my own heart.
उस समय जब खिला रम्य सरसिज सुमन, रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित एक कविता है। गुरुदेव टैगोर एक प्रमुख भारतीय कवि और दार्शनिक हैं, जिन्होंने 1913 में अपने काव्य संग्रह गीतांजलि के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह कविता, ‘गीतांजलि’ में संग्रहित अन्य कई कविताओं की तरह, पाठकों को उनकी अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर चिंतन करने और आंतरिक सत्यों की अनुभूति करने के लिए आमंत्रित करती है।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
उस समय जब खिला रम्य सरसिज सुमन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ।
है खिला पद्म यह ध्यान आया नहीं
शून्य दलीय कमल खोज पाया नहीं
दृष्टि पथ में समाया न सरसिज हसन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥
मात्र छाई उदासी कभीं जग गया
चौंक अद्भुत सुमन गंध में रंग गया
जब सुरभि ले बहा मंद दक्षिण पवन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥
भर गयी उर में धुंधली मधुरिमा कसक
यों लगा ले जगा पूर्णता की ललक
ग्रीष्म ऋतु का मनोहर समुत्सुक श्वसन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥
जानता था न इतनी निकटतम धुरी
यह हमारा ही सौरभ मेरी माधुरी
खिल उठी पूर्ण ‘पंकिल’ ह्रदय में गहन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥
बहुत अच्छा भावानुवाद किया है भावानुवाद का. ओरीजनल तो शायद बंगला में है.
'' मात्र छाई उदासी कभीं जग गया
चौंक अद्भुत सुमन गंध में रंग गया
जब सुरभि ले बहा मंद दक्षिण पवन
हाय मेरा भटकता रहा मंद मन ॥
— हो सके तो यह लय ( कविता के संग ) बाऊ को पोस्ट कर देवें !
क्या पता संतुलन-बिंदु लयात्मक हो कर प्रकट हो ! 🙂