Monthly Archives

January 2009

Article | आलेख, Contemplation, General Articles

अब न अरमान हैं न सपने हैं

“ऐसी मँहगाई है कि चेहरा ही बेंच कर अपना खा गया कोई। अब न अरमान हैं न सपने हैं सब कबूतर उड़ा गया कोई।” एक झोला हाँथ में लटकाये करीब खाली ही जेब लिये बाजार में घूम रहा हूं। चाह…

Poetry, Ramyantar

आपका हँसना

आपके हँसने में छन्द है सुर है राग है, आपका हँसना एक गीत है। आपके हँसने में प्रवाह है विस्तार है शीतलता है, आपका हँसना एक सरिता है। आपके हँसने में शन्ति है श्रद्धा है समर्पण है, आपका हँसना एक…

Blog & Blogger, Hindi Blogging

निंदक-वंदना का विवेक-सत्‍य

Screenshot of Vivek Singh’s Blog ‘निंदक नियरे राखिये’ की लुकाठी लेकर कबीर ने आत्‍म परिष्‍कार की राह के अनगिनत गड़बड़ झाले जला डाले। ब्‍लागरी के कबीरदास भी इसी मति के विवेकी गुरूघंटाल हैं। कबीर ने तो खुद को कहा था,…

Contemplation, Essays

कर स्वयं हर गीत का शृंगार

दूसरों के अनुभव जान लेना भी व्यक्ति के लिये अनुभव है। कल एक अनुभवी आप्त पुरुष से चर्चा चली। सामने रामावतार त्यागी का एक गीत था। प्रश्न था- वास्तविकता है क्या? “वस्तुतः, तत्वतः, यथार्थः अपने को जान लेना ही अध्यात्म…

Contemplation, चिंतन

किसने बाँसुरी बजाई

जरा और मृत्यु के भय से यौवन के फ़ूल कब खिलने का समय टाल बैठे हैं? जीवित जल जाने के भय से पतंग की दीपशिखा पर जल जाने की जिजीविषा कब क्षीण हुई है? क्या कोयल अपने कंठ का मधुर…

Love Poems, Poetry, Ramyantar

वह आँसू कह जाते हैं

Source: http://antoniogfernandez.com मेरा प्रेम कुछ बोलना चाहता है । कुछ शब्द भी उठे थे, जिनसे अपने प्रेम की सारी बातें तुमसे कह देने को मन व्याकुल था , पर जबान लड़खडा गयी। अन्दर से आवाज आयी “कोई बाँध सका है…

Contemplation, Essays, चिंतन

कैसे मुक्ति हो?

कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन हैं। देखता हूं जिन्दगी भी क्या रहस्य है। जब से जीवन मिला है आदमी को, तब से एक अज्ञात क्रियाशीलता उसे नचाये जा…

Poetry, Ramyantar

उसकी याद ही अच्छी

Photo: From Facebook-wall of Pawan Kumar खो ही जाऊं अगर कहीं किसी की याद में तो बुरा क्या है? व्यर्थ ही भटकूंगा- राह में व्यर्थ ही खोजूंगा- अर्थ को व्यर्थ ही रोऊंगा- निराशा के लिये, न पाऊंगा प्रेम, दुलार और…

Poetry, Ramyantar

बात, यदि अधूरी है

बात, यदि अधूरी है तो उसका अर्थ नहीं, यदि संभावनायें हैं तो उसे पूर्ण कर लेना व्यर्थ नहीं। कहा था किसी ने स्वीकार है मुझे भी- “कविता करो न करो कवि बन जाओ” और अपनी इस सहज मनोदशा में उस…

Contemplation, Essays, चिंतन

रास्ते बन्द नहीं सोचने वालों के लिए

कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो, लेकिन पाता हूं कि समय का सिन्धु-तरण साहित्य के जलयान से हो जाता है। साहित्य की जड़ सामाजिक विरासत लिये होती है। शब्दों…