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मेरा प्रेम
कुछ बोलना चाहता है ।
कुछ शब्द भी उठे थे, जिनसे
अपने प्रेम की सारी बातें
तुमसे कह देने को
मन व्याकुल था ,
पर जबान लड़खडा गयी।
अन्दर से आवाज आयी
“कोई बाँध सका है
कि तुम चले हो बांधने
प्रेम को, शब्दों में।
ठहर गया मैं।
प्रश्न था, प्रेम बोलना चाहता है,
अभिव्यक्त होना चाहता है,
पर प्रेम के पास तो कोई भाषा ही नहीं-
मौन है प्रेम।
तो ऐसी दुविधा में उलझकर
पोर-पोर रो उठे,
आंखों से आंसू झरें
तो आश्चर्य क्या?
आंसू झर पड़ते हैं, जब
गहरी हो जाती है कोई अनुभूति-
प्रेम की अनुभूति- शब्दातीत।
राह मिल गयी……
जो शब्द नहीं कह पाते
वह आँसू कह जाते हैं।
जो शब्द नहीं कह पाते
वह आँसू कह जाते हैं।
-ये राह नहीं मित्र–बोध की प्राप्ति है. आप लगभग गौतम बुद्ध टाइप के हुए. 🙂
बेहतरीन रचना-बधाई.
प्रेम कि कोई भाषा तो नहीं है परंतु अभिव्यक्ति के रूप ना जाने कितने हैं. बहुत सुंदर. आभार.
प्रेम अभिव्यक्ति के रास्ते तलाश कर लेता है ..चाहे वह लफ्ज़ हो या आंसू .सुंदर लगी आपकी यह रचना
गज़ब कर दिया जी !
राह मिल गयी……
जो शब्द नहीं कह पाते
वह आँसू कह जाते हैं।
हिमांशु भाई बहुत सुंदर.
धन्यवाद
ऐसी कविता पर क्या टिप्पड़ी दी जा सकती है ! सुंदर !