एक खामोशी-सी दिखी
एक इंतिजार भी दिखा
अनसुलझी आंखों में बेकली का
सिमटा ज्वार भी दिखा,
आशाओं के दीप भी जले
विश्वास के सतरंगी स्वप्न भी खिले
लगा जैसे हर सांस
वीणा के सुर में सुर मिलाकर
गुनगुना रही हो, और
जैसे कोई काली-सी कोयल
एक थके राही को प्रेम का,निश्चय का
सुधा-सा गीत सुना रही हो।
मन हुआ मैं क्यों न लिखता
गीत कुछ इस बानगी के?
पिरोया हो प्यार जिसमें और
बंधा हो स्नेह का अनमोल मोती,
कर सकूं मैं याचना उस गीत में
‘याद रखना मुझे और मेरा पता’।
वह तुम्हारा गीत,या फ़िर पत्र
बह गया इस मन-विजन में
स्वर-समीरण बन।
निश्चय ही ऋतुराज नजदीक हैं !
वह तुम्हारा गीत,या फ़िर पत्र
बह गया इस मन-विजन में
स्वर-समीरण बन ।
याद ही रह जाती है .अच्छी लगी आपकी यह रचना
वीणा के सुर में सुर मिलाकर
गुनगुना रही हो, और
जैसे कोई काली-सी कोयल
एक थके राही को प्रेम का,निश्चय का
सुधा-सा गीत सुना रही हो ।
बहुत बढ़िया लिखा है
—आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें
खामोशी भी ,इंतज़ार भी ,आंखों में सिमटा ज्वार / आशा ,कोयल ,वीणा ,गीत ,आख़िर कोई क्यों न लिखेगा /आपने लिखा उचित ही किया
वह तुम्हारा गीत,या फ़िर पत्र
बह गया इस मन-विजन में
स्वर-समीरण बन ।
” sunder…”
regards
रचना कमाल की है !
वह तुम्हारा गीत,या फ़िर पत्र
बह गया इस मन-विजन में
स्वर-समीरण बन ।
बहुत ही खूबसूरत कविता है…
लगा जैसे हर सांस
वीणा के सुर में सुर मिलाकर
गुनगुना रही हो, और
जैसे कोई काली-सी कोयल
एक थके राही को प्रेम का,निश्चय का
सुधा-सा गीत सुना रही हो ।………gr8