बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन को
संगी बना न लेना बरसात के पवन को ।
वह ही तो है तुम्हारा उसके तो तुम नहीं हो
बेचैन कर रहा क्यों समझा दो अपने मन को ।
न नदी में बाँध बाँधो मर जायेगी बिचारी
कितनी विकल है धारा निज सिन्धु से मिलन को ।
तूँ पुकारता चला चल जंजीर खटखटाते
वे सहन न कर सकेंगे सचमुच तेरे रुदन को ।
बहुत ही प्यारी रचना. आभार.
बहुत खुब..
बेहद सुंदर रचना.
रामराम.
अच्छे शेर हैं, पसंद आए।
प्रत्येक शब्द और पंक्ति मन में अंकित हो गयी वाह !!
बहुत बहुत सुन्दर रचना….
अच्छी रचना !
अहा…
अच्छे मिस्रे बाँधे हैं हिमांशु जी
बहुत खूब
सबसे जबरदस्त पहली लाईन
कविता के बहाने आपने एक सुंदर सा विचार भी दिया है। मैं आपकी भावनाओं को सलाम करता हूं।
धर्म की व्याख्या के बहाने जीवन के गहरे सूत्र भी आपने उपलबध करा दिये।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुकुमार ,कमसिन मनोभावों की उददाम अभिव्यक्ति !
सुन्दर!