Monthly Archives

June 2009

Ramyantar

तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर…

तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर अचिन्त्य ही चिन्तन का भाव बन जाता हैठीक उसी तरह, जैसे, मूक की मोह से अंधी आँखों में आकृति लेते हैं अनुभूति के बोल,जैसे,किसी प्रेरणा की निःशब्द गति भर देती है सुगन्ध से मेरी अक्रिय संवेदन-दृष्टि…

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टिप्पणी अदृश्य होकर करते हैं हम …

आशीष जी की यह पोस्ट पढ़कर टिप्पणी नियंत्रण का हरबा-हथियार (मॉडरेशन) हमने भी लगाया ही था कि पहली टिप्पणी अज्ञात साहब की ही आ गयी । रोचक है, और उपयोगी भी । कितना सच्चा अर्थ पकड़ा है उन्होंने मेरी कविता…

Ramyantar

सही कहा तुमने…..

वर्ष अतीत होते रहेपर धीरज न चुकाऔर न ही बुझातुम्हारा स्नेह युक्त मंगल प्रदीप, महसूस करता हूँ-तुम समय का सीना चीर करयौवन के रंगीले चित्र निर्मित करोगे,एक कहानी लिखोगे, जिसमें होगास्नेह-स्वप्न-जीवन का इतिवृत्त,और प्रतीक्षा में डबडबायी मेरी आँखेंपोंछ दोगे अपने…

वृक्ष-दोहद

रमणियों की ठोकर से पुष्पित हुआ अशोक: वृक्ष दोहद-1

वृक्ष दोहद की संकल्पना के पीछे प्रकृति के साथ मनुष्य का वह रागात्मक संबंध है जिससे प्रेरित होकर अन्यान्य मानवीय क्रिया-कलाप वृक्ष-पादपों पर आरोपित कर दिये जाते रहे हैं। प्रकृति के साथ मनुष्य के  यह रागात्मक सम्बन्ध वस्तुतः उसके आनन्द…

Ramyantar

चुईं सुधियाँ टप-टप

चुईं सुधियाँ टप-टपआँखें भर आयीं । कैसे अवगुण्ठन को खोलतुम्हें हास-बंध बाँधा थाकैसे मधु रस के दो बोलबोल सहज राग साधा था, हुई गलबहियाँ कँप-कँपसाँसे बढ़ आयीं । कैसे उन आँखों की फुदकनमहसूसी थी मन के आँगनकैसे मधु-अधरों का कंपनगूँज…

Ramyantar

हमसब की हरकतें : सच्ची-सच्ची

डिग (Digg) पर सफर करते हुए उसके आर्ट्स एंड कल्चर (Art & Culture) वर्ग से इस रोचक चित्रावली का लिंक मिला । कल्पनाशीलता और उसके प्रस्तुतिकरण दोनों ने लुभाया । मूल ब्लॉग से साभार, आपके सम्मुख भी ज्यों का त्यों…

Article | आलेख, Science

यह हँसी कितनी पुरानी है ?

हँसते हुए यह कभी नहीं सोचा था, कि यह हँसी कितनी पुरानी है और किसका अनुकरण कर मानव की हँसी की प्रवृत्ति विकसित हुई होगी?  खींसे निपोरकर, दाँत दिखाते हुए हँसना, खिलखिलाते हुए तोंद हिलाते हुए हँसना, आवाज निकालते चिल्लाते…

वृक्ष-दोहद

वृक्ष दोहद के बहाने वृक्ष-पुष्प चर्चा: कवि प्रसिद्धियाँ व कवि समय

साहित्य के अन्तर्गत कवि-समय का अध्ययन करते हुए अन्यान्य कवि समयों के साथ वृक्ष दोहद का जिक्र पढ़कर सहित्य की विराटता देखी। वृक्ष-दोहद का अर्थ वृक्षों में पुष्पोद्गम से है। यूँ तो दोहद का अर्थ गर्भवती की इच्छा है, पर…

Ramyantar

हार गया तन भी, डूब गया मन भी ।

समय की राह सेहटा-बढ़ा कई बारविरम गयी राह ही,मन भी दिग्भ्रांत-साअटक गया इधर-उधर । भ्रांति दूर करने कोदीप ही जलाया थाज्ञान का, विवेक का,देखा फिरखो गयीं संकीर्णतायेंव्यष्टि औ’ समष्टि की । स्व-प्राणों के मोह छोड़सूर्य ही सहेजा थाउद्भासित हो बैठी,…