तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर
अचिन्त्य ही चिन्तन का भाव बन जाता है
ठीक उसी तरह,
जैसे, मूक की मोह से अंधी आँखों में
आकृति लेते हैं अनुभूति के बोल,
जैसे,किसी प्रेरणा की निःशब्द गति भर देती है
सुगन्ध से मेरी अक्रिय संवेदन-दृष्टि को,
जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से,
और जैसे, मृत्यु के माथे पर
जीवन के ओज-रस से भरे फूल खिलते हैं ।
ऐसे ही मैं
सोचता हूँ तुम्हें निरन्तर ।
अब कविताओं में ठण्डा पानी और मेघ बहुत दिखेंगे !
सुन्दर रचना ! आपकी छाप लिए हुए !
बहुत भाव प्रवण रचना
जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से,
और जैसे, मृत्यु के माथे पर
जीवन के ओज-रस से भरे फूल खिलते हैं ।
ऐसे ही मैं
सोचता हूँ तुम्हें निरन्तर ।
आपके ख्यालात के जवाब नही ……….हम भी इन ख्यालो मे कशिश ही कशिश है ………………….बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
"और जैसे, मृत्यु के माथे पर
जीवन के ओज-रस से भरे फूल खिलते हैं । "
यह रहस्य जिसने जान और जी लिया उसने जीवन का प्याला पी लिया वह भी स्वाद ले ले कर।
साधुवाद,
तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर
अचिन्त्य ही चिन्तन का भाव बन जाता है
साधुवाद परिपक्व चिंतनमय रचना के लिये.
ऐसे ही मैं
सोचता हूँ तुम्हें निरन्तर ।
बहुत सुंदर जबाब नही आप की लेखनी का,
धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
—
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
हिमांशु जी, सच कहता हूँ… आपकी लेखनी, आपकी भाषा, आपकी शैली, आपकी प्रतिभा से जलन होती है.
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया .
बहुत अच्छी कविता ..
अच्छा लगा
जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से,
बहुत गहरे भाव हैं. बहुत सुंदर.
रामराम.
मृत्यु के माथे पर ही जीवन पनपता है – बिल्कुल सही!
aapki kavita jeevan ke un shaashvat moolyon ko rekhankit karti hai ….jise durbhagyavash hum apni dainandin aapadhaapi me khote chale ja rahe hain
आकृति लेते हैं अनुभूति के बोल,
जैसे,किसी प्रेरणा की निःशब्द गति भर देती है
सुगन्ध से मेरी अक्रिय संवेदन-दृष्टि को,
जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से,
और जैसे, मृत्यु के माथे पर
जीवन के ओज-रस से भरे फूल खिलते हैं
in panktiyon me bahri saundrya k saath saath jo bheetree pravaah hai …….main uska haardik abhinandan karta hoon !
जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से.
वाह ! बिलकुल सही.
इस प्यारी सी सोच को सलाम करने को जी चाहता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भावपूर्ण रचना
जन्मदिवस की बहुत -बहुत शुभकामनायें .
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'जैसे फूट पड़ता है ठंडे पानी का सोता
किसी निस्पन्द शिला से'
सुन्दर कल्पना!
बहुत ही भावपूर्ण कविता है.
-हिमांशु जी,आज आप को आप के जन्मदिन की ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनायें
"जैसे, मूक की मोह से अंधी आँखों में
आकृति लेते हैं अनुभूति के बोल…"
अहा, अद्भुत प्रेम-रस !
हिमांशु जी! आपको जन्मदिन की असीम शुभकामनाएं! आप सदैव सक्रिय, स्वस्थ, और सानंद रहें, यह मेरी कामना है! आपकी रचनाधर्मिता को नित नए सोपान मिलें, आप सुख-शांति को पाते, बाँटते रहें. आपका नायाब ब्लौग मैंने अपने ब्लौग में हिंदी के सबसे अच्छे ब्लॉग्स की लिस्ट में शामिल कर लिया है.
हिमांशु जी! आपको जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो
@ अल्पना जी, धन्यवाद इस शुभकामना के लिये ।
@ निशांत मिश्र, आभार । आपके खयाल के चिट्ठो में स्थान पाकर हर्षोन्मत्त हूँ। पुनः धन्यवाद ।
@ काशिफ आरिफ़, धन्यवाद । स्नेह बनाये रखें ।