वर्ष अतीत होते रहे
पर धीरज न चुका
और न ही बुझा
तुम्हारा स्नेह युक्त मंगल प्रदीप,
महसूस करता हूँ-
तुम समय का सीना चीर कर
यौवन के रंगीले चित्र निर्मित करोगे,
एक कहानी लिखोगे, जिसमें होगा
स्नेह-स्वप्न-जीवन का इतिवृत्त,
और प्रतीक्षा में डबडबायी मेरी आँखें
पोंछ दोगे अपने मधु अधरों से ।
सही कहा तुमने
अदृश्य होते हैं हाँथ अनुग्रह के ।
कमाल है हिमांशु भाई!
kavya ke is abhinav swaroop ko dekh kar aaj din ki shuruaat kar rahaa hoon
arthat shree ganesh bahut hi achha kar raha hoon..
badhaai !
सुन्दर और सुकुमार मनोभिव्यक्ति
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है .. बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है .. हमारी भी बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर और कोमल अभिव्यक्ति.
रामराम.
बहुत सुंदर ।
very expressive
सुन्दर्।
बहुत बढिया!!
बहुत सुन्दर
—
डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
सुन्दर अभिव्यक्ति
भाई जादू है , बहुत सुंदर .
धन्यवाद
बहुत बढ़िया !
सही कहा आपने 🙂
अदृश्य होते हैं हांथ अनुग्रह के इसीलिये तो टिप्पणी अद्रुश्य होकर कर्ते है हम ।
सचमुच अदृश्य ही हैं हाथ अनुग्रह के ..!!!!
सचमुच अदृश्य ही हैं हाथ अनुग्रह के ..!!!!