व्यथित मत हो
कि तू किसी के बंधनों में है,
अगर तू है हवा
तू सुगंधित है सुमन के सम्पुटों में बंद होकर
या अगर तू द्रव्य है निर्गंध कोई
सुगंधिका-सा बंद है मृग-नाभि में
या कवित है मुक्तछंदी तू अगर
मुक्त है आनन्द तेरा सरस छान्दिक बंधनों में
या अगर नक्षत्र है तू
परिधि-घूर्णन ही तुम्हारी लक्ष्य-गति है
या अगर तू आत्मा है
देंह के इस मृत्तिका घट में बंधी है,
मत व्यथित हो
कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।
सुन्दर !
हिमांशु ब्राण्ड कविता !
मत व्यथित हो
कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।
===
जीवन के सार्थक रहस्यो को अभिव्यक्त करती शानदार रचना
सहमत हूँ विवेक जी से -हिमांशु ब्राण्ड कविता !जी हाँ हिमांशु की कवितायें उनकी मानस की ऐसी विशिष्ट इम्प्रिंट /प्रिंट हैं ki उनकी सानी दुर्लभतम है !
इस कविता में मुक्ति और बंधन कुछ तरह गुत्थमगुत्था हुए लगते हैं ki इन दोनों दशाओं की नियति ही बदल गयी सी लगती है -शायद यह वही ग्रंथि है जिसे सुर नर मुनि आज तक खोल नहीं पाए तो आखिर इस सच को स्वीकारने में कवि मन आतुरता क्यों न दिखाये !
विवेक ब्रांड कविता और यह हिमांशु ब्रांड दोनों ही मन प्रमुदित करते हैं -पर क्या इन दोनों का आमेलन /संश्लेषण नहीं हो सकता ?
सनातन और अस्तित्त्व के जनक बन्धनों को सहज स्वीकृति।
अनुपम कविता।
आर्य, धन्य हुए।
निःशब्द हूँ !! बहुत ही सुन्दर !!
निःशब्द हूँ !! बहुत ही सुन्दर !!
तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ..
सही भाव को निरुपित करती रचना .
मत व्यथित हो
bahut khoob
व्यथित मन ही व्यथा से व्यथित न होने की बात कर सकता है.
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर.
वाह! सुंदर रीति से बात कही है। अभिव्यक्ति को रूप में तो बंधना ही पड़ेगा।
लाजवाब भाई.
रामराम.
बहुत सही बात कही आप ने, बहुत सुंदर कविता.
धन्यवाद
मत व्यथित हो
कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद…
मत व्यथित हो
कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।
gazab ki abhiykti …………….wishwas our bharose ka charamo utkarsh …………aise hi likhate rahe ………….hame aapki rachanaye bahut hi pyari lagati hai
सुन्दर रचना
सुंदर कविता… ब्राण्डेड भी 🙂
सच्ची बात ! सुन्दर अभिव्यक्ति. और ब्रांड की बात तो हो ही रही है.
इतनी गहरी गहरी बातों को इतने सरल ढंग से कैसे कह लेते हैं आप।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक अद्भुत कविता हिमांशु जी और विशेष कर क्लाईमेक्स(???) की इन पंक्तियों ने मन मोह लिया
"मत व्यथित हो कि तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है"
अनूठी रचना…!
अद्भुत
बधाइयां देंह के इस मृत्तिका घट में बंधी है,