प्रेम की अबूझ माधुरी निरन्तर प्रत्येक के अन्तस में बजती रहती है। अनेकों को विस्मित करती है, मुग्ध करती है और जाने अनजाने जीवन की उन ऊँचाइयों पर ले जाती है जिनसे जीवन अपनी अक्षुण्णता में विरलतम हो जाता है। प्रेम की ऐसी ही एक अविश्वसनीय गाथा प्रकाश में आई चीन में जिसने पूरी दुनिया का अन्तर छू लिया। सत्य ही, प्रेम पंथ ऐसो कठिन ।
Liu Guojiang और Xu Chaoqin की अनूप प्रेम कथा
यह कथा है सत्तर साल के बूढ़े एक चीनी व्यक्ति की जिसने अपनी अस्सी साल की पत्नी के लिये दुर्गम पहाड़ों के मध्य 6000 सीढ़िया निर्मित कर दीं।
कथा प्रारंभ होती है पचास साल पहले जब 19 साल का एक युवक लिउ गुओजिआंग (Liu Guojiang) 29 वर्ष की विधवा स्त्री सू चाओकिन (Xu Chaoqin), जो कुछ बच्चों की माँ भी है, के प्रेम में पड़ जाता है। प्रेम की तीव्रता अनेकों आयाम छूती है, और दोनों वैवाहिक बंधन में बँधने को प्रवृत्त होते हैं। पर प्रेम की इस यात्रा के पथ इतने आसान कहाँ? पचास वर्ष पूर्व की तत्कालीन परिस्थिति में पूरा समाज विपरीत हो गया, मित्रों ने आलोचना के पथ चुन लिये और संबंधियों ने अपनी रिश्तेदारी तोड़ डाली। कारण दो थे- एक अधिक उम्र की स्त्री का होना, और दूसरा बच्चों की माँ होना। समाज के लिये अनापेक्षित था कि एक युवा अपने से उम्रदराज स्त्री से विवाह बंधन में बंधे।
प्रेम की अदम्य इच्छा-शक्ति के प्रभाव से प्रेमी-युगल ने संसार को अस्वीकार करने का साहस किया और समाज की चर्चा को विराम देने के लिये और उनकी घृणास्पद सामुदायिकता से दूर प्रेम का एकांत रचने के लिये दक्षिणी चोंग किंग Chong Qing नगरपालिका के जियांगजिन Jiangjin काउंटी में एक गुफा में रहने लगे। पहाड़ॊ का यह जीवन कहीं से भी सहज नहीं था प्रारंभ में उनके लिये, क्योंकि वहाँ सुलभ ही क्या था जीवन-चर्या के लिये- न भोजन, न आवास, न बिजली। पर जीना तो था। प्रेम की भूख तो मिट रही थी, पर पेट की भूख? तो उन्होंने पर्वतों पर मिलने वाली जड़े और घास खायी, प्रकृति की सहज उपलब्ध वस्तुओं से अपनी आवश्यकताएं पूरी कीं। लिउ ने किसी तरह एक कैरोसीन लैम्प बनाया और जैसे सब कुछ प्रकाशित हो गया पहाड़ की उस गुफा में।
सू चाओकिन कई बार यह अनुभव करती कि उसने लिउ को एक विचित्र से बंधन में बाँध दिया है, और अनेकों बार पूछती- “क्या तुम्हें पश्चाताप है अपने निर्णय का?” लिउ सहजता से उत्तर देता- “जीवन होता ही है दुष्करतम। जैसे-जैसे हम इस जीवन की चढ़ाई परिश्रम पूर्वक चढ़ते जायेंगे, यही जीवन सहल हो जायेगा हमारे लिये।” लिऊ ने समो लिया इस गूढ़ तथ्य को अपने भीतर, और अपने मनोरथ में घुला-मिला दिया उसने अपने प्रिय का हित। प्रेम की अदम्य जीजिविषा और श्रम के अमोल सत्य ने आच्छादित कर लिया लिऊ को। जैसे सब कुछ सहज ही घटित होने लगा- पहाड़ों ने राह दे दी, प्रकृति ने छाँह। अपने प्रिय की सहजता और अपने प्रेमपूर्ण जीवन को गति देने के लिये पर्वत-प्रवास के दूसरे साल से शुरु लिऊ का श्रम पचास वर्षों तक अनवरत चलता रहा- उसने ’सू’ के लिये पहाड़ का जीवन सुगम बना दिया और वह आसानी से पहाड़ों पर चढ़-उतर सके- इसके लिये पहाड़ों के मध्य 6000 सीढ़ियां बना डालीं।
पहाड़ों के मध्य विकसित हुए इस प्रेमपूर्ण जीवन का पता सन 2001 में साहसी व्यक्तियों के एक समूह ने किया, जब वह जंगलों की खाक छान रहे थे। उन्होंने दो बूढे व्यक्तियों को देखा जो गुफाओं में रह रहे थे, जहाँ जीवन और प्रेम की विराटता के चिन्ह मौजूद थे। उन्होंने पाया कि यह युगल पिछले पचास वर्षों से प्रेम की निस्तब्ध शान्ति का अनुभव करते हुए वहाँ अपना जीवन जी रहा था, और वस्तुतः जीवन के गहरे अनुभव पी रहा था।
यह सब कुछ सहज था। पर कुछ दिनों पहले लिऊ जीवन की अंतरंग सच्चाईयों को हृदय में ही लेकर इस धरती से चल पड़ा अपनी अनन्त यात्रा के लिये। पीछे रह गयी उसकी अतिरेकी प्रेम-निष्ठा। सू की बाहों मे पड़े उसके निश्चेष्ट शरीर पर मजबूती से कसे थे हाथ सू के। वह कह रही थी- “तुमने तो कहा था कि तुम सदा मेरा खयाल रखोगे। तुम तो यह भी कहते थे, कि मेरे मरने तक तुम मेरा ध्यान धरोगे। क्या हुआ कि तुम यूँ ही इन पहाड़ों में मुझे छोड़ कर चले गये। कैसे कटेगा यह जीवन तुम्हारी अनुपस्थिति में?” पहाड़ अब पहाड़ लगने लगे थे सू को, जीवन भी अब पहाड़ ही हो गया था। सू अपने शेष जीवन में अपने पति के काले ताबूत कॊ छूती हुई इन्हीं पंक्तियों को दोहराती रही और आँसू लगातार उसके कपोलों से झरते रहे।
वर्ष 2006 में इस प्रेम गाथा को चीन की 10 सर्वश्रेष्ठ प्रेम-गाथाओं में शामिल किया गया और स्थानीय सरकार ने उनके निवास स्थान और उन सीढ़ियों को संरक्षित कर वहाँ एक म्यूजियम की स्थापना का निर्णय लिया।
दिल छूने वाला प्रसंग है !
बहुत खूब हिमांशु जी। ऐसे जज्बे को सलाम। कहते भी हैं कि-
प्रेम न खेती नीपजै प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रुचे सिर दे सो ले जाय।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
prem ko kabhie koi paribhashit nahin kar paataa bas abhivyat kartaa haen apnae apane tarikae sae
bahut gyanvardhak jaankaaree.
हमने इस समाचार को पहले पढ़ा था. लेकिन आपकी प्रस्तुति अभूतपूर्व रही. हम सोच रहे थे की सू के बच्चों का क्या हुआ. क्या वे साथ नहीं थे. और क्या लिऊ और सू से कोई संतानोत्पत्ति नहीं हुई होगी. आप चिंतित न हों यह हम आप से नहीं पूछ रहे हैं. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
nice post,regards.
बहुत अद्भुत कथा। आज के सामाजिक जीवन जिस में प्रेम विरलतम होता जा रहा है के लिए एक प्रेऱणा स्रोत है।
ऐसी ही एक लिऊ भारत में भी हो चुके हैं और उनका नाम है दसरथ मांझी। उन्होने भी अपनी पत्नी की एक तकलीफ को मिटाने के लिये पचास साल में एक पहाड़ काट दिया। उस पहाड़ के कतने से 80 कि मी का रास्ता महज 3 किमी में सिमट गया।
लिऊ और दसरथ माझी दोनो को और उनके अमर प्रेम को शत सत नमन।
इस सुन्दर पोस्ट के लिये आपको भी धन्यवाद।
निशब्द हूँ ..अचानक दशरथ मांझी की याद हो आई.
अलौकिक प्रेम कथा, प्यार उम्र नही देखता
गहरे छू गयी यह प्रेम कथा -आपने अपने ही पड़ोस बिहार के दशरथ माझी का वृत्तांत भी सुना होगा !
@ P.N. Subramanian ji,
जहाँ तक मेरी जानकारी है कुल मिलाकर उनके सात बच्चे हुए, जिन्हे लिऊ और सू ने अपनी जिन्दगी जीने का बेहतर अवसर प्रदान किया । बाद के दिनों में बच्चे अक्सर उन्हें बाहरी दुनिया दिखाना चाहते थे, पर वह पहाड़ के उस घर को छोड़ना नहीं चाहते थे, जीवन के अंतिम दिनों तक ।
हाँ, सू के पहले बच्चों का क्या हुआ, जब वह लिऊ के साथ घर छोड़ आयी- इसके बारे में निश्चय से नहीं कह सकता । शायद उन सात बच्चों में वे भी शामिल हों ।
मै भी यही कहुंगा कि अलौकिक प्रेम कथा ……………पढवाने के लिये बहुत बहुत कृतज्ञ हुँ……………..रोम रोम मे समा गई यह कहानी……………क्या कहू मौन हुँ
बहुत गहरे उतर जाने वाली कथा. आभार.
अति सुन्दर प्रसंग है
—
नये प्रकार के ब्लैक होल की खोज संभावित
bahut hi achchhi kahani, kavita ke baad kahani likhakar bat ke baad ball se bhi kamal dikhya.—-jaiprakashchaurasia@gmail.com 9956567750
अद्भुत.
adbhut
anootha
adwiteeya
—–waah !
anand aa gaya !
अलौकिक प्रेम कथा !
हिमांशु – यह आपकी बहुत मर्मस्पर्शी पोस्ट है। अन्यतम!
पहले पढा था
मगर आपने इस कथा की बारीकियों को कुरेदा है, इससे यह जीवंत हो गया ।
इन प्रेमियों के गिर्द एक म्यूज़ियम बनाना एक सार्थक कदम है।
यह सच में प्रेरणा का श्रोत हैं।
धन्यवाद .
अन्यतम . अभिभूत हूं .