यूँ तो अनगिनत पुष्प-वृक्षों को मैंने जाना पहचाना नहीं, परन्तु वृक्ष-दोहद के सन्दर्भ में ’कुरबक’ का नाम सुनकर मन में इस पुष्प के प्रति सह...
कुरबक का वर्णन साहित्य में एक रक्त-वर्णी पुष्प के रूप में किया गया है। अमरकोष के अनुसार भी कुरबक के फूल लात होते हैं। रामायण के वसंत वर्णन में रक्त कुरबकों का उल्लेख है। कालिदास भी इसे रक्त वर्णी ही उल्लिखित करते हैं। कुरबक को कटसरैया मान लेने में थोड़ी समस्या यह भी थी कि कटसरैया पूर्णतः लाल नहीं होती और अनेकों स्थानों पर तो इसके पीत और शुभ्र पुष्प ही प्राप्त होते हैं। परन्तु विभिन्न स्थानों पर इसके भिन्न-भिन्न प्रकार एवं इसकी स्वभावगत विशेषता के साम्य के कारण इसे कटसरैया मान लेना ही उपयोगी है। वनौषधि निदर्शिका (हिन्दी समिति, सूचना विभाग, उत्तर प्रदेश) में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है कि पुष्प के रंग भेद से कटसरैया चार प्रकार की होती है - श्वेत , पीत, रक्त और नील। इनमें रक्त सौरेयक (barleria cristata) को ही कुरबक कहते हैं। इसके पुष्प भड़कीले, गुलाबी रंग के होते हैं। यह पौधे स्थान-भेद से पत्तों और पुष्प-वर्णों में भिन्न-भिन्न होते जाते हैं। हिमालय-क्षेत्र और हमारे आसपास यह पौधे जामुनी नील रंग के होते हैं।
साहित्य में कवि-प्रसिद्धि है कि कुरबक सुन्दर स्त्रियों के आलिंगन से पुष्पित हो जाता है। इस विश्वास की जानकारी कालिदास को भी थी और राजशेखर को भी। राजशेखर ने अपनी काव्य-मीमांसा में वसंत-वर्णन के क्रम में इसका संकेत किया है-
साहित्य में कवि-प्रसिद्धि है कि कुरबक सुन्दर स्त्रियों के आलिंगन से पुष्पित हो जाता है। इस विश्वास की जानकारी कालिदास को भी थी और राजशेखर को भी। राजशेखर ने अपनी काव्य-मीमांसा में वसंत-वर्णन के क्रम में इसका संकेत किया है-
"नालिङ्गितः कुरबकस्तलको न दृष्टो ना ताडितश्च चरणैः सुदृशामशोकः|
सिक्ता न वक्त्रमधुना बकुलश्च चैत्रे चित्रं तथापि भवति प्रसवावकीर्णाः||"
(आश्चर्य यह है कि इस मास में कुरबक का वृक्ष रमणी के आलिंगन के बिना, तिलक का वृक्ष उसकी चितवन के बिना, अशोक वृक्ष उसके पदाघात के बिना और बकुल वृक्ष मद्य-गंडूष के बिना ही पुष्प प्रसव करने लगते हैं।")

स्त्रियों द्वारा आलिंगन करने की इस कवि-प्रसिद्धि के पीछे शायद इस पुष्प-वृक्ष का छोटी झाड़ी या पौधे की तरह होना है। इस पौधे के स्वयंजात क्षुप आसानी से गाँवों के आसपास बगीचों की मेड़ों पर या मन्दिरों के उद्यानों, परिसरों में लगे हुए मिल जाते हैं।
कालिदास ने कुरबक का यह पुष्प वसंत में खिलते देखा था। कालिदास के काव्य में यह पुष्प सर्वत्र विद्यमान है। मेघदूत में यक्ष उद्यान के प्रसंग में उल्लेख है कि उस उद्यान के माधवी-मंडप का बेड़ा कुरबक का था। रघुवंश के वसंत वर्णन में इसका उल्लेख है। मालविकाग्निमित्र में इस पुष्प के वर्णन कि वसंत की प्रौढ़ावस्था में कुरबक के फूल पतित हो जाते हैं, हम एक संकेत भी ग्रहण कर सकते हैं कि यह कुरबक ही कटसरैया है।
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कालिदास रचित मेघदूत से एक उद्धरण |
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