Vriksha Dohad Amaltas
वृक्ष दोहद अमलतास

स्वर्ण-पुष्प वृक्ष की याद क्यों न आये इस गर्मी में। कौन है ऐसा सिवाय इसके जो दुपहरी से उसकी कान्ति चुराकर दुपहर से भी अधिक तीव्रता से चमक उठे और सारा जीवन सारांश अभिव्यक्त करे। वह कौन-सी जीवनी शक्ति है जो इस अमलतास को जीवन्त बनाये रखती है कठिनतम धूप में भी, और जो मुस्कराता रहता है सदैव अपने पीताभ वर्ण में गलबहियाँ खोले! अमलतास से हम सब बातें करना चाहते हैं कुछ न कुछ – सिद्धेश्वर भी बतिया रहे हैं अमलतास से मेरे मन की- 

“जैसे – जैसे
बढ़ता जाता है धूप का ताप
और मौसम को लग जाता है
कोई अनदेखा – अनचीन्हा पाप
वैसे – वैसे
तुम्हारी हर कलिका से उभरता है अनोखा उल्लास
देखा है – सुना है
तरावट के बिना
पत्रहीन होकर नग्न हो जाते हैं गाछ
तब तुम्हारे ये दिव्य वस्त्राभरण
बताओ तो किस करघे पर काता गया
यह मखमली रेशम – जादुई कपास.

भरी दोपहरी में
जब गहराता है आलस का अंधियारा
दोस्त ! तुम्हीं तो ले आते हो
थोड़ी रोशनी – थोड़ा उजास.”

वृक्ष-दोहद के सन्दर्भ में कर्णिकार (यही नाम तो व्यवहृत है अमलतास का संस्कृत साहित्य में) का उल्लेख देखा तो मन मचल उठा। बहुत कुछ स्मरण हो उठा कालिदास की लेखनी का चमत्कार। कालिदास ने अपने काव्य में अनगिन स्थानों पर इस कर्णिकार का उल्लेख किया है अशोक के साथ। ब्रांडिस (Brandis) भी तो अशोक और अमलतास दोनों को एक ही जाति (Cassia) का सिद्ध करते हैं। प्रसिद्धि है कि यदि कर्णिकार वृक्ष के आगे स्त्रियाँ नृत्य करें तो प्रमुदित होकर वह पुष्पित हो उठता है।

वृक्ष-दोहद के संबंध में कर्णिकार को संयुक्त करने का कारण इस वृक्ष का स्त्री-सहचर होना लगता है। कालिदास के रम्य काव्य में एकाधिक स्थानों पर इस तथ्य का उल्लेख है कि स्त्रियों से अत्यन्त निकट है यह वृक्ष। अमलतास सुन्दरियों के कानों में और केशों मॆं झूलता है, कुमार संभव में पार्वती की नील अलकों में यह नवकर्णिकार पुष्प सुशोभित है –

उमाsपि नीलाsलकमध्यशोभि विसंसयन्ती नवकर्णिकारम्
चकार कर्णच्युतपल्लवेन् मूर्ध्ना प्रणामं वृषभध्वजाय ।

कालिदास: कुमारसम्भव

और ऋतुसंहार में कान में नवकर्णिकार-पुष्पों को लगाने का उल्लेख है। स्वतः में अयत्नसंभूत यह वृक्ष स्त्रियों के मनरंजक प्रयत्नों से हर्षाभिव्यक्ति करता पुष्पित हो उठता है।

यूँ तो यह फूलता है वैशाख- जेठ की ग्रीष्मावधि में, पर साहित्य में कवि प्रसिद्धि है कि अमलतास वसंत में पुष्पित होता है। रामायण में वसंत-वर्णन के अवसर पर कर्णिकार के सुनहले पुष्पों का वर्णन मिलता है, राजशेखर वसंत में ही इसका प्रस्फुटित होना बताते हैं अपनी काव्य मीमांसा में और कालिदास ने भी वसंत में ही इन पुष्पों को खिलते देखा था। वैज्ञानिक इस पुष्प के फलों को तीखी गंध वाला बताता है और कवि कहते हैं यह पुष्प निर्गंध होता है –

“वर्णप्रकर्षे सति कर्णिकारं दुनोति निर्गंधतया स्म चेतः।
प्रायेण सामग्र्यविधौ गुणाना परांगमुखी विश्वसृजः प्रवृत्ति॥”

(कर्णिकार नामक पुष्प देखने में अत्यन्त सुन्दर होते हुए भी उनमें गंध के न होने से सहृदय पुरुषों के हृदय में उनपर तरस आती थी। ब्रह्मदेव की यह एक बुरी आदत है कि वह सकल पदार्थों में कुछ न कुछ गुण की कमी कर, किसी को सम्पूर्ण गुणसम्पन्न नहीं रहने देता।)

अमलतास के उच्छ्वसित सौन्दर्य की प्रशंसा उत्तरी हिमालय के यात्रियों ने भी मुक्त कंठ से की है। यह हिमालय के चार हजार फुट ऊँचे प्रदेशों में भी पुष्पित होता दृष्ट हुआ है। मूलतः है तो यह दक्षिण एशिया का वृक्ष, पर पूरे विश्व तक इसका विस्तार है। सूर्य-प्रिय है यह, और अकाल की भीषण स्थिति का भी सामना सहज ही खिलते हुए करता है। रूखा मौसम अमलतास को अत्यन्त प्रिय है, और यह जरा-सी भी सर्दी बर्दाश्त नहीं करता।
 
राजनिघंटुकार के मत से क्षुद्र आरग्वध (Disease-Killer) ही हिन्दी में अमलतास है। औषधीय गुणकारी यह वृक्ष एक बेहतर दर्दनिवारक और रक्त-शोधक सिद्ध है। इसकी फलियाँ अलसर, तेज बुखार, पीलिया, पेचिस आदि व्याधियों में सहायक हैं। त्वचा की देखभाल करने के लिये भी यह गर्मी में हमारी सहायता के लिये उपलब्ध है। अमलतास के औषधीय रेचक गुण (laxative actions) एंथ्राक्विनोन्स (anthraquinones) से आते हैं। अमलतास के बीजों में 2% एंथ्राक्विनोन्स (anthraquinones), 24% प्रकृत प्रोटीन (crude protein), 6.65% वसा (fat), 20% फाइबर (crude fibre) एवं 39.86% कार्बोहाइड्रेट्स (carbohydrates) की व्याप्ति होती है।

अपने स्वर्णिम पुष्पों, अपनी कमनीय प्रकृति, अपने औषधीय गुण-धर्म एवं साज-सज्जा में अपने चारु उपयोग के लिये यह वृक्ष सर्व-प्रिय व सर्व-प्रशंसित है।

# वृक्ष-दोहद के बहाने यह वृक्ष-पुष्प चर्चा जारी रहेगी। अगला पड़ाव कुरबक होगा।