राखी बीत गयी । बहुत कुछ देखा, सुना, अनुभूत किया – पर एक दृश्य अनावलोकित रह गया, एक अनुभव फिसल गया । मेरे कस्बे सकलडीहा के बहुत नजदीक के एक गाँव की दो बच्चियों ने रक्षाबंधन पर राखी बाँधी , पर किसी मनुष्य की कलाई पर नहीं – अपने लगाये वृक्षों के तनों पर । मेरे अत्यन्त परिचित श्री देवेन्द्र और कमलेश जी की बेटियों निधि और अनन्या ने रक्षाबंधन के दिन अनेकों वृक्ष जो उन्होंने सप्रेम लगाये थे- उनके तनों पर राखी के सूत्र बाँधे । सब कुछ आत्मीय हो गया मनुष्य और प्रकृति के मध्य । १० और ११ वर्ष की इन बच्चियों ने वृक्षों का राग तो तभी महसूस लिया था – जब वह बहुत छोटी थीं और गाँव की मनोहारी प्रकृति में ही घुलमिल कर जीवन की सम्यक शिक्षा के अमोलक सूत्र सीख रही थीं । प्रकृति से अच्छा सिखावनहार कौन ?
“One impulse from a vernal wood
may teach you more of a man
of moral evil and of good
than all the sages can .” (William Wordswoth )
प्रकृति का प्रत्येक स्पंदन उनके हृदय में अभिव्यक्त हो रहा था शायद और बन रहे थे रिश्ते अजाने, अनभिव्यक्त । बच्चियाँ बड़ी हो रहीं थी , वृक्ष और भी आत्मीय हो रहे थे । वृक्ष सहला रहे थे उन्हे, संरक्षित कर रहे थे । अपने आनंद का स्वभाव भर दिया वृक्षों ने उन बच्चियों में ।हृदय में अपनापन, आचरण में सुहृद भाव, जीवन में कृतज्ञता – सब कुछ वृक्षों का दिया ही तो है । त्यौहार आते हैं, बच्चियाँ पेड़ों के साथ झूम उठती हैं । राखी भी आयी – स्नेहानुराग जाग उठा ।पर्यावरणीय रक्षा का संकल्प अभिभूत कर गया इन अबोध बच्चियों को । वृक्ष से बड़ा भाई कौन ? रक्षक कौन ? आत्मीय कौन ? राखी और किसे बँधे ? तो थाल में रोली, अक्षत, चन्दन और राखी लेकर चल पड़ीं अपने सुहृद पेड़ों को राखी बाँधने । मन में प्रिय भाव था और संतुष्टि भी । संतोष भी था कि वे अकेली नहीं इस भावना से संपृक्त । अनिल पुसदकर जी की प्रविष्टि का सन्दर्भ और उसकी प्रेरणा भी तो समानान्तर खड़ी थी ।
मैं उनकी इस पवित्र भावना से अभिभूत हूँ । कामना कर रहा हूँ – पर्यावरणीय सन्दर्भ हमारी रोजमर्रा के जीवन के सन्दर्भ बन जाँय, हम व्यथित हों प्रकृति के दुख से, उल्लसित हों प्रकृति के सुख से ।

अतिसुन्दर ……
सुंदर संदेश देती हुई पोस्ट. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अनुकरणीय
Sahi kahaa aapne.
{ Treasurer-T & S }
really good post
दो बच्चियों के इस अनोखे पर्यावरणीय उदाहरण से हम सबको आगे आने की आवश्यकता है। अनूठा प्रयास।आभार है आपका इस प्रकरण को नोटिस लेने के लिए…।
बहुत सुन्दर..
बहुत सुंदर।
कौन नहीं अभिभूत हुआ होगा बच्चियों के पर्यावरण प्रेम के प्रति ..!!
इस वर्ष ऐसे दृश्य अनेक स्थानों पर देखने को मिले. मध्य प्रदेश में भी.
बच्चियों का यही भाव जनजन में हो तो गंगामाई बच जायें।
जो सब में ये भाव आ जाए तो देश की paryavaran की samasya का sudhaar हो सकता है …………
Anukarniya kritya….
…dhara yadi hamari mata hai to, vriksh hamare bhai behan hi to hue na.
dharti ko bhukaar hai jitni zaldi chet jao behtaar…
(ye main nahi kehta ya vishw bhar ke vegyanik kehte hain , see "the unconventional truth")
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .