भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बहुआयामी एवं विशिष्ट रचना-कर्म से चुनकर उनकी एक उल्लेखनीय रचना क़ानून ताज़ीरात शौहर (पति दंड विधान) प्रस्तुत है। शब्दावली वही कानूनी उर्दू-फारसी। कठिन शब्दों के अर्थ साथ ही कोष्ठक में लिख दिये गए हैं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना क़ानून ताज़ीरात शौहर को यहाँ प्रस्तुत करने का उद्देश्य भारतेन्दु का पुण्य-स्मरण तो है ही इस रचना का दस्तावेजीकरण भी है इण्टरनेट पर। क़ानून ताज़ीरात शौहर भाग-1 एवं भाग-2 के बाद प्रस्तुत हैं तीसरी एवं अंतिम प्रविष्टि।
कानून ताज़ीरात शौहर
आठवाँ बाब (प्रकरण)
जुर्म बरखिलाफ अमन (शांति) शहर
दफा (24) जो शख्स अपने दोस्तों या रिश्तेदारों को जो जोरू की राय के बरखिलाफ हैं अक्सर अपने मकान में जमा करेगा या ज्यादातर उनकी दावत करैगा, वह इस बात का मुजरिम समझा जायेगा कि उसने शहर के अमन में फरक (भंग करना) डाला।
दफा (25) जो शख्स किसी रिश्तेदार या बुजुर्ग को घर में अपने जोरू के समझने के वास्ते बुलावेगा वह भी शहर के अमन में फरक डालने का मुजरिम करार दिया जायेगा।
दफ़ा (26) दफा 24 वो 25 के मुजरिमों की सजा गाली वगैरा या जुर्म संगीन हो तो हब्सदवाम बअबूर दरियाशोर (समुद्र पार कर सदा की सजा) हो सकती है।
नवाँ बाब
अदूलहुक्मी (आज्ञा की अवहेलना)
दफा (27) जो अपनी जोरू का हुक्म न मानेगा वह अदूलहुक्मी का मुजरिम करार दिया जायेगा।
तमसीलात (उदाहरण)
अलिफ – जोरू ने हुक्म दिया कि कल शाम तक फलाना जेवर या कपड़ा बन कर आवे मगर शौहर तंगदस्ती (धनाभाव) के सबब से नहीं ला सकता इस वास्ते मुजरिम हुआ।
बे – जोरू से एक दूसरी औरत से लड़ाई है और वह लड़ाई भी महज बे बुनियाद है । दोनों के शौहर आपस में करीबी रिश्तेदार हैं, एक शौहर के यहाँ कोई शादी या गमी का जरूरी काम पेश आया और दूसरे शौहर को लड़ाई के सबब से उसकी जोरू ने पहिले के यहाँ जाने से बाज रखना चाहा मगर शौहर शर्त आदमियत से बाज न रहा इस वास्ते वह मुजरिम जुर्म दफा हाजा का हुआ।
जीम – जोरू को शैतानपरस्ती (भूत पूजना ) पर एतकाद (विश्वास) है मगर शौहर एक पढ़ा-लिखा आदमी है । लड़कों की खैरियत के वास्ते जोरू ने शौहर को किसी पीर की नेयाज (मिन्नत या चढ़ावा) करने को कहा मगर शौहर ने ईमान को पाबन्दी से उसको नहीं माना लेहाजा वह मुजरिम दफा हाजा का हुआ।
दफा (28) मुजरिम अदूलहुक्मी को जुर्माना या कैद या दोनों किस्म की सजायें दी जायेंगी।
दसवाँ बाब
जुर्म दिलशिकनी (हृदय पर चोट)
दफा (29) जो शौहर अपनी जोरू की दिलशिकनी करेगा वह दिलशिकनी के जुर्म का मुजरिम समझा जायेगा।
तमसीलात
अलिफ – शौहर ने हीलतन (कपट से) या सरीहतन ( प्रकट में) कोई हरकत ऐसी नहीं की कि उसकी जोरू की दिलशिनी हो मगर जोरू ने किसी हरकत से किसी दिलशिकनी मान ली तो वह भी दिलशिकनी होगी और उस में शौहर को कोई उज्र (आपत्ति) न होगा।
बे – शौहर किसी मोहफिल में गया और वहाँ ब मजबूरी उसको रंडियों का तमाशा देखना पड़ा तो यह भी दिलशिकनी हुई।
जीम – शौहर किसी ऐसी मजहबी जमायात में शरीक हुआ जिसमें बहुत सी औरतें मौजूद थीं अगरचे मजहब के पाबंद होकर उसका उस जमायात में शरीक होना फर्ज था मगर उससे दिलशिकनी हुई।
दाल – अगर शौहर किसी ऐसी राह से गुजरा कि जिसमें किसी सबब से कुछ औरतें जमा थीं तो वह मुर्तकिब जुर्म दिलशिकनी हुआ।
हे – किसी रिश्तेदार के सबब से या किसी मुआमिला के सबब से किसी शौहर ने दूसरे औरत से जरूरी गुफ्तगू की तो मुजरिम दिलशिकनी हुआ।
बाव – लड़कों को पढ़ने की ज्यादा ताकीद करना भी जुर्म दिलशिकनी है।
जे – रँगरेज पर कपड़ा जल्द न रंगलाने की, दरजी पर कुरती जल्द न सीने की ताकीद नहीं करना या उन कामों का जल्द अंजाम पाना उसके अख्तियार के बाहर है, तो वह शख्स मुजरिम दिलशिकनी का हुआ।
हे – मेले या तमाशे वगैरह के ऐसे मौकों से जिस में इज्जत जाने का खौफ है, जोरू को बमिन्नत बाज रखना भी जुर्म दिलशिकनी है।
दफा (30) मुजरिम दिलशिकनी को सर्सरी की कुल सजायें दी जा सकती हैं।
ग्यारहवाँ बाब
हंगामा (विद्रोह)
दफा (31) जोरू की किसी बात का जवाब देना जुर्म हंगामा है।
दफा (32) हंगामा करने वाले मुजरिम को रोने या बकने की सजा दी जायेगी।
रचना वर्ष : सन् 1883
अच्छा तो यही होता हिमांशु की थोडा और परिश्रम करके इस दस्तावेज का अपने तरीके से प्रस्तुति/रूपांतर आप करते तो ज्यादा लोकगम्य हुआ होता !
धन्यवाद हिमांशु जी, उर्दू शब्दों के हिन्दी अर्थों ने बात को पूरी तरह समझाने में मदद की..
Read More को लागू करने के लिए अगर संभव हो सके तो आप मुझसे चैट पर संपर्क कर लीजिएगा..
हैपी ब्लॉगिंग
अरविन्द मिश्रा जी ने सही कहा है शुभकामनायें
बहुत श्रेष्ठ कोशीश है आपकी, उर्दू शब्दों का साथ की साथ हिंदी तर्जुमा बडा ही सुगम्य और पठनीय बना रहा है इस पोस्ट को. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहूत खूब हिमांशु जी .
नाट्य रूप में ऐसा सन्तुलन । इसे प्रस्तुति के लिये आपको कोटिशः धन्यवाद , इस लिये भी कि आपने कठिन शब्दों के अर्थ भी बताये।
यह शमा जलाए रखिए।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छी तरह से समझ मै आ रहा है, हिन्दी मै, आप ने अच्छा काम किया.
धन्यवाद
"कानून ताज़ीरात शौहर" उर्दू फारसी हिंदी के खिचडी शब्दों के साथ पूरी तरह समझ नहीं आने के बावजूद भी इतनी रोचक है ….पूरी रचना का हिंदी अनुवाद इसकी पठनीयता को सरल और सुगम बनाने में मददगार होता …अरविन्दजी का आग्रह उचित है ..!!
बहुत अच्छा प्रयास. आभार.
aapke pujy pitaji ki rachnayen "akhilam-madhuram"
bahot acchi lagi.vahan tippani karne ka koi option nahi mila to yahan kar raha hun.
aap blog tak aaye or hausala_afzaaii kii .shukr_gujar hun aapka
भाषा जितनी अटपटी लग रही है, उतनी प्रिय भी। एक बार पुन: एक साथ पढूंगा।
हिमांशु जी, आपके साईट पर आना अच्छा लगा। इस कालम को और पठनीय और बोधगम्य बनायें ताकि पाठक की नज़र में गड़ सके। ्फिर भी आपके श्रम की सराहना करता हूँ।धन्यवाद।
पहले तो हम समझ ही नहीं पाए कि हो का रहा है …
जब समझे तो लगा कि इ तो नायाब है
हम तो कहाँ देख-पढ़ पाते इ सब भाई..
ह्रदय से आभारी हैं आप जो इ पढ़वायें हैं…
तो माने इ हुआ कि पत्नी लोग ठीके धीराय रहें हैं पति लोगन को…:):)
waah! urdu pe aapki pakad dekh ke maza aa gay………
bahut hi achcha laga apke blog pe aa ke…..
title bahut hi achcha likha hai aapne…. sachcha sharnam…….
आदरणीय अरविन्द जी , सोचा था यही था कि इसका हिन्दी में रुपांतर कर प्रस्तुत करूँ, पर भारतेन्दु की कारयित्री प्रतिभा का क्षणांश भी स्वयं में अनुभव न कर सका । लगा शायद इस रचना की दुर्जेयता लंघ्य हो जाय । एक बार यह विचार भी आया कि इसे संक्षिप्त कर नाट्य रूप से हटाकर एक सामान्य आलेख की तरह प्रस्तुत करूँ – पर तब शायद इसका स्वरूप खतरे में पड़ जाता ।
यह सच है कि यह सहज संप्रेषित न हो सका होगा आज, पर इस रचना का महत्व भाषा की दृष्टि से नहीं बल्कि इसकी विषयवस्तु या मारक अभिव्यक्ति से है । मेरे हिसाब से थोड़ा भी परिश्रम इसे सहज ही बोधगम्य बना सकेगा । साभार ।
@ निर्झर नीर , अखिलं मधुरम पर आपकी उपस्थिति से अभिभूत हूँ । वहाँ शीर्षक के लिये प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करना होगा । अनुनय है कि भविष्य में उस प्रविष्टि के शीर्षक पर क्लिक करें और अपना मूल्यवान कमेंट वहाँ दें । आभार ।