हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित क्वचिदन्यतोऽपि पर की गयी टिप्पणी प्रसंगात यहाँ प्रस्तुत कर दे रहा हूँ।
हिन्दी दिवस के निहितार्थ
देर से देख रहा हूँ, पर हिन्दी दिवस के दिन देख रहा हूँ – संतोष है।
इसका कुछ निहितार्थ भी जाने अनजाने खुल रहा है । विचित्र है मनुष्य का यह मन! यह हिन्दी के शब्द नहीं सीखना चाहता- कठिन हैं इसलिये या शायद पिछड़ेपन के प्रतीक हैं इसलिये- तो भीतर एक विचार तंत्र बनता है जिसका लक्ष्य एक चली आ रही सत्ता (अंग्रेजी) को अक्षुण्ण रखना है।
हम प्रयास नहीं करते! हमें हिन्दी कठिन लगती है। हम उनके विकल्प दूसरी भाषाओं (अंग्रेजी) में ढूँढ़्ना चाहते हैं। पर जब हमें अंग्रेजी कठिन लगती है, हम उसके लिये शब्दकोष ले आते हैं। उन कठिन अंग्रेजी शब्दों के विकल्प हिन्दी में नहीं ढूँढ़ते।
हिन्दी का प्रवेश लोक की संश्लिष्ट चेतना का प्रवेश है- चाहे सत्ता में, चाहे पाठ्यक्रम में, चाहे व्यवहार में, चाहे हमारी अंतश्चेतना में। हिन्दी के आने से सत्ता में नये वर्ग, नये विचार प्रवेश करेंगे। हिन्दी के एक कठिन शब्द के प्रति (खासतौर पर जो इतनी आत्मीयता से ब्लॉग-जगत में उपस्थित है) इतनी उदासीन मनोवृत्ति। ऐसे अनगिन शब्द हमें सीखने होंगे अध्यवसाय से, क्योंकि इसी अध्यवसाय से विकास की नयी दिशायें खुलेंगीं। देश में स्वावलंबन का उदय होगा। फिर जागेगी देश के प्रति स्वाभिमान की मनोवृत्ति और स्वभूति का अनुभव कर सकेंगे हम।
हिन्दी सबकी भाषा क्यों नहीं?
हम ’स्व’ के प्रति इतनी लगन वाले क्यों नहीं? ’स्व’ के प्रति लगाव, अपनापन से ही तो प्रकट होता है ममत्व! हिंदी अपनेपन का प्रतीक है और नींव है। हिन्दी सबकी भाषा क्यों नहीं? हिन्दी के ऐसे शब्द सबके शब्द क्यों नहीं? अंग्रेजी से अनभिज्ञ समाज के मतों की स्वीकृति के लिये ही रह गयी है यह भाषा? हिन्दी सहनीय है, परन्तु विकास की प्रवृत्ति का परिचय नहीं।
हम विस्मृत कर रहे हैं उपनिषदीय वचन- “नायमात्मा बलहीनेन लभ्य”। आत्मा कैसे पायी जा सकेगी यदि बल ही खो गया। बलहीन आत्मा की उपलब्धि नहीं किया करते। हिन्दी की उपेक्षा में क्या भारत की आत्मा ही नहीं खो गयी? सृजनशीलता की कर्मण्यता ही नहीं खो गयी?
हिन्दी को उपेक्षित कर हमने अपने आत्मविश्वास को उपेक्षित कर दिया है। हमारी अन्तर्निहित प्रज्ञा, हमारी प्रतिभा, हमारा सम्मान वंचित हो रहा है। हमें हिन्दी के इस आत्मविश्वास को संरक्षित करना होगा।
जनभाषा है हिन्दी, जनभाषा बने हिन्दी
“जनभाषा है हिन्दी, जनभाषा बने हिन्दी”- अनगिनत बार कहे जाने वाले इन वाक्यों में एक अनोखा वैपरीत्य नजर आता है मुझे – एक आइरोनी (Irony)- बिलकुल हिन्दी दिवस के रूप में उपस्थित एक जीवंत आइरोनी की तरह। सब कुछ खानापूर्ति के लिये। केवल कह दिये जाने के लिये। पूरे देश में निभायी जाती है औपचारिकता, लिये जाते हैं मजबूती के संकल्प- परन्तु ढाक के वही तीन पात! क्यों? भारतीय जिस प्रकार वस्तु के प्रति स्वदेशी भाव से परोन्मुख हैं, भाषा के प्रति भी हैं।
वह तो भला हो हिन्दी की गतिशील भाषिक संस्कृति का, उसमें अन्तर्निहित उदारवादी विकासशीलता के तत्व का- कि इसमें भाषाई बद्धमूलता और जड़ता का दोष नहीं आने पाया और सभ्यताओं के संघर्ष, अस्मिताओं की टकराहट, विखंडनवाद, मूल्यों और मान्यताओं के विघटन, वैश्विक बाजारवाद व भाषाओं की विलुप्ति की चिंता के इस संक्रमण काल में भी हिन्दी ने अपने अस्तित्व के प्रश्नचिन्हों को दरकिनार किया। भाषा फलती, फूलती रही। कारण इसकी ग्राहिका शक्ति। विभिन्न भाषाओं के शब्दों को अपनी ध्वनि-प्रकृति में ढाल लेने की सामर्थ्य।
हिन्दी के फलक का विस्तार हमें सुनिश्चित करना है। हम क्वचिदन्यतोऽपि कहते ठहरें नहीं, विरम न जाँय। यह क्वचिदन्यतोऽपि का भाव न होता तो बाबा तुलसी की रामायण न होती।
एक साधै सब सधै सब साधै सब जाय ।
बेहतरीन..।
आभार ..!
बहुत सुंदर। क्लेशहर पोस्ट है यह। ऐसा नहीं है। भारतीय दुनिया भर में जा रहे हैं। नए निर्माण कर रहे हैं वहीं हिन्दी भी ले जा रहे हैं। हिन्दी फैल रही है। बस इस का तकनीकी प्रयोग बढ़ने लगे। फिर देखिए कमाल। तकनीकी काम हिन्दी में करने लगें तो वह सुरक्षित भी रहे और हिन्दी का विस्तार भी होने लगे।
"यह क्वचिदन्यतोऽपि का भाव न होता तो बाबा तुलसी की रामायण न होती ।"
हिंदी दिवस की मंगल कामनाएँ!
बहुत सुन्दर। हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें
यथार्थ अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद तथा हिंदी दिवस की शुभकामनाऍ.
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना . हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लें .
सटीक टिप्पणी की है .. क्वचिदन्यतोपि के कारण हर क्षेत्र का फलक विस्तृत होता है .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
बहुत सुन्दर। हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें
बहुत सुंदर कहा आपने. हिंदी दिवस की शुभकामनाएं सिर्फ़ आज के लिये नही बल्कि रोज के लिये.
रामराम.
क्वचिदन्यतोऽपि का सार्थक भाव लिए आपकी यह प्रविष्टी हिंदी दिवस का एक बेहतरीन उपहार है..
बहुत आभार ..!!
हिन्दी दिवस की शुभकामनाये -आपने अपेक्षानुरूप विवेचन किया है ! हिन्दी के उज्जवल भविष्य के प्रति हम आशान्वित हैं !
हिंदी का विकास तो हो ही रहा है. अंग्रेजी से डरने की जरुरत नहीं. पहले से भी कितने ही विदेशी शब्द हैं हिंदी में, स्वरुप बदल सकता है पर बनी रहेगी हिंदी.
बहुत ही सुन्दर लेख …………..हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये
हिन्दी में तरह तरह के छात्र हैं। गदहिया गोल से ले कर पीएचडी तक के। कुछ हमारे जैसे करॉस्पोण्डेंस कोर्सिये भी – जो कुंजी ले कर पढ़ते समझते हैं!
समुद्र सेतु बनाने में सब सहयोग कर रहे हैं – नल-नील से ले कर गिलहरी तक!
bahut hi achcha lekh…….. ab to hindi ka hi bhavishya hai…….. ab hindi hi raj karegi…..
हिन्दी दिवस के अन्तिम क्षणों में यहाँ तक मैं पहुँच ही गया,
बहुत सुन्दर विवेचना,
राम राम!
हम ’स्व’ के प्रति इतनी लगन वाले क्यों नहीं ? ’स्व’ के प्रति लगाव, अपनापन से ही तो प्रकट होता है ममत्व ! हिंदी अपनेपन का प्रतीक है और नींव है ।
hindi kahin nahi jaane wali himanshu ji….
…vishwash kijiyea ye sadev rahegi.
pata nhai kyun mujhe to aisa hi lagta hai….
…haan beshak abhi ye 'hindi diwas' 'hindi saptah' aadi vishram grahon main aaram farma rahi hai….