क्या कहेंगे आप इसे ? संघर्ष ? समर्पण ? निष्ठा ? जिजीविषा ? आसक्ति ? या एक धुन ? मैं निर्णय नहीं कर पा रहा । चित्र तो देख रहे होंगे आप। उसमें रात है, अंधेरा भी । उस अंधेरे में कोई है । कुछ कर रहा है शायद । शायद क्यों ? पक्का पता है मुझे – लिख रहे हैं । अंधेरे में ? नहीं, नहीं ! रोशनी भी है – मोबाइल की । अनुमान हो सके तो देखें, हेमन्त है । अंधेरे में मोबाइल की रोशनी में एक छोटे से पैड पर अपनी कलम से सुबह की प्रविष्टि लिख रहे हैं । कुल जमा डेढ़-दो महीने के इस ब्लॉगर को यह क्या सूझा ?
कल अचानक ही हेमन्त से बात के दौरान मैंने जाना – बहक कर कह दिया उन्होंने – कि रात के गहराने के साथ लेटे-लेटे अंधेरे में (बिजली तो रहती नहीं कभी रात को, वैकल्पिक साधन भी सायास बन्द कर दिये जाते हैं ) जब हेमन्त की सोचने की गति तीव्र हो जाती है, और अभिव्यक्त होकर बाहर आना चाहती है वही सोच, तब और कुछ नहीं सूझता । एक मोबाइल है टॉर्च वाली (रोशनी कितनी होगी ? अनुमान कर लीजिये ) । हेमन्त टॉर्च की रोशनी में कागज पर कलम से जो लिख रहे होते हैं बहुधा वही उनके चिट्ठों की सुबह की प्रविष्टि बनती है ।
मैं हतप्रभ हो गया सुनकर । हँसी भी आ गयी । खुद पर । बिजली नहीं है, व्यस्तता बहुत है, कुछ दिमाग बन नहीं रहा – ऐसे न जाने कितने बहाने मैंने अपनी झोली में रखे हैं ; कई बार मेरा चिट्ठा हफ्तों अपडेट नहीं होता । पर इन्हें देखिये, दिन भर की गहरी व्यस्तता, घर की जिम्मेदारियों के अकेले खेवनहार लिखे जा रहे हैं – दिन में व्यस्त हैं, तो रात को; बिजली नहीं है तो मोबाइल की रोशनी में । आप इनका चिट्ठा देखें – लगभग रोज अपडेट होता हुआ । आप वहाँ तलाशना मत साहित्य के श्रेष्ठतम मानक और यह भी मत कहना (प्लीज !) कि जो छपा है, वह उल्लेखनीय़ कितना है ! आप तो बस हौसला देना – “मंजिल न दे, चिराग न दे, हौसला तो दे …”
ज्यादा क्या कहूँ, हेमन्त की संवेदना से जुड़ता इतना ही कह रहा हूँ –
“मैं राह का चिराग हूँ, सूरज नहीं हूँ मैं
जितनी मेरी बिसात है काम आ रहा हूँ मैं ”
पाद-टिप्पणी : और हाँ, भाभी जी (हेमन्त की पत्नी ) ने मेरी बार-बार की याचना स्वीकार ली थी और ऊपर लगा हुआ चित्र उन्होंने ही रात को (कितने बजे ? पता नहीं ) अपनी मोबाइल से सप्रयत्न खींच कर मुझे उपलब्ध कराया । इसमें काफी प्रयत्न है उनका ( फोटो मोबाइल से ली गयी है) । आभार उनका ।
हेमंत भाई को प्रणाम इस बात के लिए और आपको शुभकामनाये
हेमन्त का चिट्ठा बहुत खुब है… और आपका प्रयास भी… शुक्रिया..
ब्लॉग्गिंग जो ना करवाए 🙂
ऐसी प्रेरणात्मक प्रयास को जानकर्,मुझे उर्जा अवश्य मिलेगी/ मै भी अपने समय का और सदुपयोग करने की ज्यादा कोशिश करुंगा ताकि आपका यह पोस्ट लिखना सार्थक हो सके/बहुत बहुत आभार!
हेमन्त का लेखन बहुत अच्छा है और मुझे नहीं मालुम था कि इस तरह से लिखा जाता है!
hemant ji ka lekhan behtreen hai…….shukriya post padhwane ka bas wahan comment nhi kar pa rahi hun.
Itna dedication?
wakai is dedicaton ke liye ye sher umda hai…
"मैं राह का चिराग हूँ, सूरज नहीं हूँ मैं
जितनी मेरी बिसात है काम आ रहा हूँ मैं "
aur is sher ke liye ye comment….
"चाह सागरों की क्यूँ, बूँद तो मिली तुझे ,
सागरों के गर्भ में , थाह तो वहीँ की है ।"
सही कहा, हर आदमी अपनी बिसात भर तो करता ही है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पूत के पाँव पालने में !
प्रेमचंद जब लिखते थे तो उन की मुद्रा वैसी होती थी जिस में उन्हें सब से अधिक कष्ट होता था। पर शायद वे वैसे ही लिख पाते थे। या लिखने का आनंद था जो तकलीफ को हरा देता था।
भवानी प्रसाद मिश्र जी की पंक्तियाँ है " कुछ लिखकर सो .कुछ पढ़कर सो /जिस जगह तू जागा है उस जगह से बढ़कर सो " सोने से पहले यह ज़रूरी है । हेमंत सही राह पर है ज़रूरी है इस हौसले को बनाये रखना ।
हेमंत का चिटठा नियमित रूप से पढ़ती रही हूँ ..उसमे अपने लेखन के प्रति जबरदस्त समर्पण और जूनून है …जब आप जैसा मार्गदर्शक और अभिप्रेरक उनके साथ है तो लेखन पथ पर निश्चय ही वे बहुत आगे तक जायेंगे …नाम कमाएंगे …हेमंत को बहुत शुभकामनायें और आपका आभार …!!
एक अदने से आदमी पर
उसकी रचनाधर्मिता को लेकर
हिमांशु जी का इस तरह से उसका परिचय कराना
कभी सपने में भी न सोचा था ।
किस तरह से आभार व्यक्त करूं
आप सब के आशीर्वाद को
संभाल पाऊं
धन्य होऊंगा..!
आप सब की अपेक्षा के साथ न्याय करने में समर्थ हो सकूं…!
सदैव..!
आभार !
किस कसौटी पर रखूं हिमांशु ! तुम्हें
समस्त गुण धर्म का रसायन काम नहीं कर रहा !
बहुत ही अच्छा रहा —
रात के अन्धेरे जो धीरज के साथ काटते हैं।
सुबह की रोशनी उनका इन्तजार करती है।
आपकी गुणधर्मिता की जितनी तारीफ़ हो कम ही है।