नन्दू चच्चा को
महीने भर का काम मिल गया
छप्पर दुरुस्त हो गया
आज बगल वाली शकुन्तला का
“सर्दी नहीं पड़ेगी” की भविष्यवाणी
फेल हो गयी – पन्ना बाबा चहक उठे
रेखवा की अम्मा ने
पहली बार ओढ़ ली शाल
और आज पहली बार
लछमिनियाँ ने बेच दिया पूरा अमरूद
कोआपरेटिव पर आज मिलने लगी खाद
किसी का सिर नहीं फूटा किरासन की लाइन में
जॉब-कार्ड पर पहली बार अंकित हुआ काम
सोहन भईया ने बो दिया गेंहूँ
धान घर आ गया आज
अखबार में पढ़ा – “दो घंटे अधिक रहेगी बिजली “
आज पहली बार बाजार साफ किया सफाईकर्मी ने
आज प्रधान जी ने नहीं कटने दिया एक पेड़
बाहर की धूप मेरे आँगन में उतर आयी
मन का धुँआ गुम हो गया कहीं
शुभ संभाव्य की प्रस्तावना ने रोमांच दिया
अन्तर में सज गया सुभाषित
आज मेरे आँवले के वृक्ष ने टपकाये कुछ फल
खिल गया सुर्ख लाल गुलाब पहली बार पौधे पर
मन हुआ उल्लसित
शायद
आज मैं मिलूँगा तुमसे !
Photo Source : Google
क्या बात है…सब शुभ शुभ है. बहुत उम्दा!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे – यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें – यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
वाह कितना उछाह भरा है यह नव विहान गीत !
यह कविता चिर स्मरणीय रहेगी -आईये इसी आशावादी उत्साह से नववर्ष का
स्वागत करें! रामराज्य की और बढायें इक कदम !
आज मेरे आँवले के वृक्ष ने टपकाये कुछ फल
खिल गया सुर्ख लाल गुलाब पहली बार पौधे पर
मन हुआ उल्लसित
शायद
आज मैं मिलूँगा तुमसे ! …
इतना कुछ हुआ है पहली बार …नयी सुबह का खुबसूरत आगाज़ हो रहा है …
हर दिन हर पल नयी खुशनुमा अनुभूतियों एहसासों से सजा रहे …
बधाई व शुभकामनायें …
सब अच्छा-अच्छा हो .. कितनी अच्छी बात। बहुत-बहुत धन्यवाद। नव वर्ष की शुभकामनाएं।
nice
रघुवीर सहाय और त्रिलोचन की स्मृति हो आई।
जिन्दगी के छोटे छोटे सुखों को कैसे समेटती है ये कविता – कुछ नहीं छोड़ा! इस सहेजन दृष्टि ने सबके छुटके छुटके सुख बटोर कर जिन्दगी की बगिया में बिखेर दिए –
देखो! लखन बूटी लहलहाई।
धतूरे के पौधे सफेदी छाई।
मोथे पर खिले हैं मंजर और
दूब बदले है रूप,
हरियाली के बीच
ग़जब सफेदी सुन्दर, वो मंजर !
खिले हैं जाने कितने पीले फूल
कँटीला पौधा सजा है अनूप
खेतों की मेंड़ पर
गँवार गन्ध बिखेरे
सजी है वो भाटिन
जो खिली है धूप…
भैया, कविताई नहीं नरक के सपने से उबरने की कोशिश कर रहा हूँ। इस कविता को विस्तार दे दो ना !
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
पाण्डेय जी, सुर्ख लाल की जगह गुलाबी गुलाब फोटो क्यों लगाए?
बड़े लापरवाह हो।
आप की पोयट्री का यह रूप भी सुन्दर लगा।
आप का फॉलोवर बनता हूँ। लेकिन मेरी बात आप नहीं मानते – क्यों?
मेरे आपन जन से अपना नाम तो हटाओ।
@ सुहृद बेनामी,
सच कहा, लापरवाह तो हूँ !
पर बात क्यों नहीं मानूँगा, जो मान सकूँगा – गुलाब बदल दिया, जो पहला मिला उसी से ।
मेरे आपन जन से खुद को हटाना तकनीकी तैयारी से होगा भईया ! हम ठहरे निपट लापरवाह और अज्ञ ! कोशिश करते हैं । आपका धन्यवाद !
इस साल की विदाई और नये साल के स्वागत में ऐसी ही आशाभरी पोस्ट की जरूरत है। बहुत अच्छा लगा।
पुनश्च @ सुहृद बेनामी,
मुझे लगता है कोशिश कामयाब हुई ! अपना नाम फ़िल्टर कर दिया है । इतना खयाल करने और परिष्कार करने के लिये आभार । स्नेह बनाये रखें ।
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दिल खुश कर देने वाली कविता,
आभार!
बहुत सुंदर कविता …सीधे दिल में उतर गई……
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आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं….
हिमांशु जी,
कितनी ही बातें हो गयीं पहली बार आपकी कविता में…और विश्वास है पहली बार बेनामी जी की झिडकी भी मिली होगी…
बाबा हम यो कल ही खा चुके…..लेकिन बात सही कही उन्होंने इसलिए मानना भी पड़ा….
खैर बात करते हैं आपकी कविता की….कितनी सजग , कितनी सहज और कितनी सरल …..बस हैरान हूँ..!!
सचमुच कितना कुछ होने लगता है स्वयमेव एक तुमसे मिलने के नाम पर। समस्त बिम्ब अपनी लापरवाह बाँटों में भी एक सुनियोजित सिलसिले का भान दे रहे हैं। कवि का तिलिस्म…!!!
लफ़्ज़ों के भावों में बांध कर रख दिया आपने ..बहुत सुन्दर ..नया साल मंगल मय हो
तो पहले तो अरविंद जी की बात को मै अपनी टिप्पणी मे जोड़ लेता हूँ…!
फिर..
नव वर्ष पर इतनी ताज़गी भारी, सकारात्मकता से ओत-प्रोत कविता अभी तो पहली ही पढ़ी मैंने….अति उत्तम..!!!
सुन्दर लिखा है
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें
हर चीज कविता है ! जो बिलकुल भी सुन्दर नहीं है ……उसमें भी कुछ तो बहुत सुन्दर है ही ………..न ? …….और उस कम सौन्दर्य को ग्रहण कर पाना अपेक्षाकृत सरल है ……….
नववर्ष की शुभकामनाएं…!!!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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पुरूषों के श्रेष्ठता के जींस-शंकाएं और जवाब।
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।
खिल गया सुर्ख लाल गुलाब पहली बार पौधे पर
मन हुआ उल्लसित
शायद
आज मैं मिलूँगा तुमसे !
शुभकामनाएं हैं मेरी ….मिलने के बाद पता दें ……!!
कविता पढ़ी। लगा, जना रामराज्य आ ही गया है!
वाह हिमांशु जी बहुत अच्छे बहुत अच्छे