’महाजनो येन गतः..’ वाला मार्ग
भरी भीड़ वाला मार्ग है
नहीं रुचता मुझे,
जानता हूँ 
यह रीति-लीक-पिटवइयों की निगाह में 
निषिद्ध है, अशुद्ध है ।

चिन्ता क्या ! 
मेरी इस रुचि में (या अरुचि में)
बाह्य और आभ्यन्तर,
प्रेरणा और व्यापार की साधु-मैत्री है । 

मैं हठी हूँ, 
जानता हूँ क्षिप्र भी हूँ
तो क्या !
सोचता ही हूँ कहाँ मैं 
निन्दा और स्वीकृति, विधि और निषेध को
साहसी हूँ ,
औ’ विजेता हूँ 
लोक-लज्जा से उफनती भीरुता का ।

मैं स्वलक्षण-शील हूँ ।

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Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021