darkens. Ah, love, why dost thou let
me wait outside at the door all alone ?
In the busy moments of the noon-tide
work I am with the crowd, but on
this dark lonely day it is only for
thee that I hope.
If thou showest me not the face,
if thou leavest me wholy aside,
I know not how I am to pass
these long rainy hours.
I keep gazing on the far-away gloom
of the sky, and my heart wanders
wailing with the restless wind.
(R.N.Tagore : Geetanjali )
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
श्रम मंडित दोपहरी का अति व्यस्त समय हमने काटा है
जन संकुल परिसर में अपने को हमने प्रियतम बाँटा है ,
किन्तु मिलन की आस तुम्ही से है जब सघन तिमिरमय बेला-
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
यदि न दिखा देते हो हमको निज मुख परम मनोहर प्यारे
हमें त्याग कर कर देते हो हे प्रियतम पूर्णतः किनारे,
दीर्घ पावसी काल कहेगा, कैसे लगा पयोधर मेला –
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
मैं टकटकी लगाये ’पंकिल’ दूर निहार रहा हूँ अम्बर
विकल पवन के संग भटकता विलख रहा मेरा अभ्यंतर,
कैसे वर्षा काल कटेगा यदि कर दी तुमने अवहेला –
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
(’पंकिल’ – मेरे बाबूजी )
बाबू जी ने बहुत ही उम्दा भावानुवाद किया है हमेशा की तरह!
बहुत ही बढियां भावानुवाद -हृदयंगम करने लायक !
बेहतरीन.
अद्भुत …!!
बहुत ही बडिया अनुवाद है धन्यवाद्
शब्दशः नही वरन् भावशः भावानुवाद..जो एक अमर रचना को एक अलग ही कलेवर देता है..अष्टम स्वर सा..गीतांजलि के अलग-अलग अनुवादों के संस्करण पढ़ता हूँ मगर मन नही भरता..
शोभन…अप्रतिम…! अब पता चला कि क्यों इतनी कम आयु में आप में इतनी प्रगल्भता है, यह तो वंशानुगत है…आपके बाबूजी द्वारा किया गया यह अनुवाद मुझे बहुत अच्छा लगा-
"वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला"
एक कहावत सुनी थी कभी 'पिता पे पूत जात पे घोडा , बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा'…
अब इस ब्लॉग से बेहतर उदाहरण और कहाँ मिलेगा भला..इस कहावत के लिए !!
हैरानी मिश्रित ख़ुशी हो रही है..गुरुदेव की गीतांजलि को आपके बाबूजी के हाथों सँवरते देख…
मैं टकटकी लगाये ’पंकिल’ दूर निहार रहा हूँ अम्बर
विकल पवन के संग भटकता विलख रहा मेरा अभ्यंतर,
कैसे वर्षा काल कटेगा यदि कर दी तुमने अवहेला –
वहिर्द्वार पर बैठ प्रतीक्षा करने दी क्यों मुझे अकेला ॥
और गवाह बनी हैं उपर्युक्त पंक्तियाँ…. कि श्री 'पंकिल' जी से बेहतर भावार्थ, अप्रतिम गीतांजलि और कहाँ पाती भला…!!
क्या सौन्दर्य है !!! … शुरुआत में बादल पर बादल आना , एतदर्थ … आहिस्ता-आहिस्ता
अन्धकार की स्थिति का आगमन … कारी बदरिया , सघन बदरिया , पानी वाली … अब
आगे ये पंक्तियाँ इस पृष्ठभूमि को प्रसृत करती हैं —
'' … मिलन की आस तुम्ही से है जब सघन तिमिरमय बेला- ''
'' … दीर्घ पावसी काल कहेगा … ''
'' … कैसे वर्षा काल कटेगा यदि कर दी तुमने अवहेला ''
— यानी शुरुआत में जो बादल , तम , वर्षा का वितान तना उसका उचित काव्यात्मक
निर्वाह हुआ है .. और यह भी गौरतलब है जो पंक्तियाँ मैंने यहाँ रखी है ये सभी अपने-अपने
छंदों की तीसरी पंक्तियाँ हैं … इस विषम ने विषमता को और सघन किया है .. आनद आ गया , पूछो मत !
.
हाँ , अब पिता जी के निर्देशन में काव्यानुवाद की लय साधिये , तुम्ही बताओ इसका कोई विकल्प है ! … आभार ,,,
HIMANSHU JI MAINE JAVASCRIPT CODE AAPKO MAIL KER DIYA HAI.
AAPKE YAHOO WALE ACCOUNT PER TRY THIS ………….SAMEER
Bahut achchhaa bhaavaanuvaad kiyaa hai aapke babu ji ne. shubhakaamanaayen.
Poonam
बहुत बढ़िया भावानुवाद…. मुझे तुम्हारी हिंदी बहुत अच्छी लगती है …… मैं तुम्हे व तुम्हारी हिंदी को नमन करता हूँ…..
नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से …. काफी दिनों तक नहीं आ पाया ….माफ़ी चाहता हूँ….
आभार।
अनुवाद बहुत सुंदर बन पडा है।
——–
घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।
Nice.
Had it been in free verse, it would have been finer.
I also have translated two lines of Geetanjali. Pls. visit and tell how is it ?
@ जब सघन तिमिरमय बेला
अत्युत्तम
बाबू जी से कह कर अनुवाद को छ्न्द मुक्त करवाइए न। प्लीज आचार्य।
किसी भी आचार्य के पास अपनी बुद्धि होती है , कहने – बोलने – सुनने के लिए ..
वह बेवजह किसी की फगुनही-'प्लीज' की कोई परवाह नहीं करता !
२८ बरस और हिंदी में ये विद्वता … अद्भुत… इस ब्लॉग और लेखक पर बहुत दिनों से चोर नज़र है… किन्तु आज खुद को रोक नहीं सका… कहाँ मिलती है ऐसी हिंदी आजकल… बहुत कम बचे हैं… कल ही केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से लौटा हूँ… यह सही समय था यहाँ लिखने के लिए… आपके कार्य और हिंदी भाषा के ज्ञान का कायल हुआ हिमांशु जी…
@सागर जी,
चोर नज़र आत्मीय नज़र थी । खुल, खिल, खिलखिला गया हूँ आपकी उपस्थिति देखकर यहाँ । आत्मीय भाव बनाये रखें ।